For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

परिवार की इज्ज़त -लघु कथा

'स्नेहा....स्नेहा ....' भैय्या  की कड़क आवाज़ सुन स्नेहा रसोई से सीधे उनके कमरे में पहुंची .स्नेहा से चार साल बड़े आदित्य  की आँखें  छत  पर घूमते पंखें पर थी और हाथ में एक चिट्ठी थी .स्नेहा के वहां पहुँचते ही आदित्य ने घूरते हुए कहा -''ये क्या है ?' स्नेहा समझ गयी मयंक की चिट्ठी भैय्या के हाथ लग गयी है .स्नेहा ज़मीन की ओर देखते हुए बोली -'भैय्या मयंक बहुत अच्छा ....'' वाक्य पूरा कर भी न पायी थी  कि   आदित्य ने  जोरदार तमाचा उसके गाल पर जड़ दिया और स्नेहा चीख पड़ी '' भैय्या ..''.आदित्य  ने उसकी चोटी पकड़ते हुए कहा -''याद रख स्नेहा जो भाई तेरी इज्ज़त बचाने के लिए किसी और की जान ले सकता है वो ....परिवार की इज्ज़त बनाये रखने के लिए तेरी भी जान ले सकता है .'' ये कहकर आदित्य ने झटके से स्नेहा की चोटी छोड़ दी और  वहां से निकल कर घर से बाहर चला गया ..आदित्य के जाते ही दीवार पर टंगी माता-पिता की तस्वीरें देखती हुई स्नेहा वही बैठ गयी . मन ही मन सोचने लगी -''आज अगर वे जिंदा होते तो शायद मैं कुछ कर पाती ...पर भैय्या ......लेकिन अगर भैय्या  को पसंद नहीं तो मैं ...अब मयंक से नहीं मिलूंगी .''दिन का गया आदित्य जब रात के बारह बजे तक भी न लौटा तो स्नेहा का दिल घबराने लगा .राह देखते देखते उसकी आँख लग गयी .माथे  पर कुछ सटा होने के अहसास से उसकी आँख खुली तो आदित्य को सिरहाने खड़ा पाया उसके हाथ के रिवॉल्वर को अपने माथे पर लगा पाया .स्नेहा कुछ बोलती इससे पहले ही आदित्य रिवॉल्वर का ट्रिगर दबा चूका था और आदित्य के कानों में गूँज रहे थे गली के कोने में खड़े लफंगों के शब्द .....''ये देखो खुद की रोज़ी-रोटी चलाने को बहन को धंधे पर लगा दिया ...अजी कौन जाने किस किस से चक्कर है ....हम ही क्या बुरे हैं...... कुछ भेंट तो हम भी चढ़ा  देते ...और ...और जोरदार ठहाके !!!

                                                                                    शिखा कौशिक 'नूतन '
                              

Views: 682

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 25, 2012 at 6:03pm

बहुत कुछ सोचने पर विवश करती लघु कथा यही बात उससे उलट होती तो बहन भाई की पसंद के विषय में सोचती उससे खुल कर बाते करती !!! 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 25, 2012 at 2:55pm

विवेक का इस्तेमाल नहीं किया. 

ऐसे निर्णय लिया जाए तो बस...

सोचने को मजबूर करती कथा. बधाई. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 25, 2012 at 2:51pm

क्या कहा जा सकता है इस लघु कथा में अभिव्यक्त घटना पर !  अच्छा ताना-बाना बुना गया है. शिक्षा मात्र सनद के लिये नहीं, बल्कि समझ के लिये हो. अन्यथा कई-कई आदित्य अपने नाम के विपरीत परिवार-समाज को तमाच्छादित करते रहेंगे.

अच्छी कथा के लिये हार्दिक धन्यवाद, शिखाजी.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on November 25, 2012 at 2:46pm
पारिवार के इज्जत की सोंच ने इससे आगे सोंचने समझने और निर्णय तक पहुचने की जरूरत ही नहीं समझते । इस प्रकार व्यक्ति 
कितना बड़ा अन्याय कर बैठता है, कितना बड़ा पाप और गैर क़ानूनी कार्य कर बैठता है, यह समझाने में कहानी सफल रही है ।
हार्दिक बधाई स्वीकारे शिखा कौशिक जी 
Comment by shikha kaushik on November 25, 2012 at 2:08pm

 नीलांश जी व् गणेश जी प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार

Comment by Nilansh on November 25, 2012 at 1:30pm

संदेशात्मक   के लिए बधाई आपको


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 25, 2012 at 1:15pm

गली के आवारा कुत्तों की भौकने की आवाज सुन एक सनकी हाथी ने एक निर्दोष को कुचल दिया था, अच्छी लघु कथा, बधाई शिखा जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service