मर्द बोला हर एक फन मर्द में ही होता है ,
औरत के पास तो सिर्फ बदन होता है .
फ़िज़ूल बातों में वक़्त ये करती जाया ,
मर्द की बात में कितना वजन होता है !
हम हैं मालिक हमारा दर्ज़ा है उससे ऊँचा ,
मगर द्गैल को ये कब सहन होता है ?
रहो नकाब में तुम आबरू हमारी हो ,
बेपर्दगी से बेहतर तो कफ़न होता है .
है औरत बस फबन मर्द के घर की 'नूतन'
राज़ औरत के साथ ये भी दफ़न होता है .
शिखा कौशिक 'नूतन'
[द्गैल -धोखेबाज़ , फबन-सज सज्जा ]
Comment
अप्रत्यक्ष रूप से आप जो संप्रेषित करना चाह रहीं हैं ,हो रहा है इस नवल प्रयास के लिए बधाई
रहो नकाब में तुम आबरू हमारी हो ,
बेपर्दगी से बेहतर तो कफ़न होता है .
कड़वी सच्चाई व्यक्त करती एक बेहतरीन रचना पर बधाई।
शिखा जी एक कडवी सच्चाई से रूबरू कराती हुई प्रस्तुति बहुत खूब बधाई आपको
रहो नकाब में तुम आबरू हमारी हो ,
बेपर्दगी से बेहतर तो कफ़न होता है .
बहुत सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति .बधाई
बहुत खूब, आपको बधाई ||
पहले पद को बदल कर ऐसे भी कर सकते हैं कि
उसने बोला मर्द में ही हर फन होता है ,
औरत के पास तो सिर्फ बदन होता है .
सुन्दर प्रयास
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