सजा औरत को देने में मज़ा है तेरा ,
क़हर ढहाना, ज़फा करना जूनून है तेरा !
दर्द औरत का बयां हो न जाये चेहरे से ,
ढक दिया जाता है नकाब से चेहरा !
बहक न जाये औरत सुनकर बगावतों की खबर ,
उसे बचपन से बनाया जाता है बहरा !
करे न पार औरत हरगिज़ हया की चौखट ,
उम्रभर देता है मुस्तैद होकर मर्द पहरा !
मर्द की दुनिया में औरत होना है गुनाह ,
ज़ुल्म का सिलसिला आज तक नहीं ठहरा !
दर्द औरत के दिल का जान सकता है 'नूतन'
वही जो दिल में उतरकर देखे गहरा !!
शिखा कौशिक 'नूतन '
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
आदरणीया, शिखा कौशिक‘नूतन‘ जी, अतिसुन्दर गजल ‘दर्द औरत के दिल का जान सकता है ‘नूतन‘
वही जो दिल में उतरकर देखे गहरा !! बधाई स्वीकारें।
जी आदरणीय सौरभ जी आपकी बात से सहमत हूँ |
आदरणीया राजेशजी, आपने जिस संवेदना और संयत ढंग से अपनी बातें रखीं हैं वह वास्तव में आपके हृदय की गहराइयों को बयान करता है. यह सही है कि शिखाजी को एक अरसे पढ़ रहा हूँ. हर बार अभिभूत भी होता हूँ. लेकिन आप मंच के उदार वातावरण को मात्र सुनाने का माध्यम समझती हैं, यही सालता है. आप जितने दिनों से इस मंच पर हैं, अबतक ग़ज़ल की बारिकियों को आत्मसात कर अपनी कहन को तथ्यात्मक ऊँचाई दे चुकी होतीं. साहित्य के परिवेश ही नहीं सामान्य समाज को भी एक सही अगाहकर्ता सुलभ होता.
मेरे कहे को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार.
इस सुन्दर रचना हेतु बधाई स्वीकारें!.
आदरेया शिखा जी मर्मस्पर्शी एवं ह्रदय स्पर्शी रचना है, महिलाओं के साथ घटित कटु सत्य को शब्दों के जरिये सुन्दरता से प्रस्तुत किया है आपने. जिस तरह से परिवर्तन हो रहा है अगर यूँ ही चलता रहा तो पतन अधिक दूर नहीं है. बहरहाल इस सुन्दर रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आदरणीया शिखा जी बहोत ही सुन्दर ...हार्दिक बधाई
अभिव्यक्ति के लिये बधाई. आपकी भावनाओं का सम्मान करते हुए आपकी रचनाओं में काव्य तत्व का आग्रही हूँ. कथ्य सटीक है.
शुभेच्छाएँ.. .
बहुत सख्त है और ढँकने की बात को बहुत बेपर्दगी से बयाँ करती है , पढ़ने के बाद सोचने लगा -- यह जमीन के किसी हिस्से का सच है क्या ? लज्जत भरी है आपकी बातों में . असआर बुलंद है . शुक्रिया नूतनजी .
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