तीन दुर्मिल सवैया छंद :-
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(1)
चित चॊर चकॊर मरॊर दई, झकझॊर दई पँसुरी पँसुरी,
कस माखनचॊर गही बहियां, चटकाइ दई अँगुरी अँगुरी,
फिर फॊरि दई छलिया गगरी,चिचुवाइ दई सगरी लँगुरी,
चुपचाप खड़ी हिय लाज गड़ी, सब दॆह भई चँगुरी चँगुरी,
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(2)
जरि अंग गयॆ सगरॆ सखि री,नहिं एक जरी हठकै गठरी,
सब बॊल सुहावन हैं बिरथा, कबहूँ न लहैं सुधरैं शठ री,
कवि"राज"कहैं कलिकाल चढ़ा,मन-चाह बढ़ी बहुतै नठरी,
यमराज लिवाय चलॆ जइहैं, रहि जांय धरॆ मुरदा ठठरी,
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(3)
जब तॆ बिटिया बड़वार भई, उड़ि नींद गई इन नैनन तॆ,
घर-वार मिलॆ परिवार मिलॆ,दिलदार मिलॆ वर ना मन तॆ,
कहुं चैन नहीं हमरॆ मन कॊ,बतियाइ लगी उठि रातन तॆ,
करतार हमार गुहार सुना, हम दीन हई बहुतै धन तॆ,
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Comment
रविकर,,,,,,,,, जी आपको प्रणाम एवं दिल से आभार इस स्नेह-वर्षा हेतु ,,,,,,,,,
वाह
शानदार
राज बुन्देली जी
बेहद शानदार अद्भुत
हार्दिक बधाई
कवि राज बुंदेली जी, तीनों दुर्मिल सवैया मस्त मस्त.
बहुत बढ़िया आदरणीय -
शुभकामनायें ||
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