था , और दीदी की डंडा संटी
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तोड़ फोड़ कर बचपनके , सारे खिलौनें , रेत भर हांथों को ले कर
छोड़ कर गाँव का घर , पीठ पे ढ़ोने शहर , हम आ गए
,.,.,.,.,.,..,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.
आँगन की वो धुप , छाँव , गर्मी , सर्दी , बारिश हैं याद
खट्टा,मीठा , कडुआ ,खारा जिह्वा पर सारे हैं स्वाद
धुप सेंकती माँ का चेहरा , छाँव ढूँतें बाबा दायी
गर्मी का पंखा सिन्नी का और सर्दी की एक रजाई
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कतली, खीर, कसार, रवे का हलुआ, छोड़ कर आधा ही सफ़र
पीठ पे ढ़ोने शहर , छोड़ कर गाँव का घर, हम आ गए
,.,.,.,.,.,..,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.
हमको मिलता था उपहार जब आती गर्मी की छुट्टी
सुबह सुबह उठने से ज्यादा इस्कूली बस्ते से मुक्ति
बस इक होती थी बिनबोली , पापा से अपनी मनुहार
बरस बाद हो सुलभ हमें भी अम्मा की अम्मा का प्यार
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
पापड़,दवा,अचार के सौ सौ नुस्खे , अब कहा नानी , कहा नानी का घर
पीठ पे ढ़ोने शहर , छोड़ कर गाँव का घर, हम आ गए
,.,.,.,.,.,..,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.
माँ ,बहन , भाई , पिता रिश्तें सभी छोड़ कर गाँव का घर हम आ गए -----------------
पेट के कहने में fir हम आ गए पीठ पे ढ़ोने शहर , हम आ गए माँ ,बहन , भाई , पिता रिश्तें सभी छोड़ कर गाँव का घर हम आ गए ----------------- ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ऑफिस का रिक्शा पापा का और मदिर वो घंटा - घंटी अम्मा की हर बात रटी थी हमको बरसों पंक्ति पंक्ति हंसी ठिठोली , गिल्ली - डंडा बाबा जी की घंती - मंती मास्टर जी का पाठ याद था , और दीदी की डंडा संटी
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
तोड़ फोड़ कर बचपनके , सारे खिलौनें , रेत भर हांथों को ले कर
छोड़ कर गाँव का घर , पीठ पे ढ़ोने शहर , हम आ गए
,.,.,.,.,.,..,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.
आँगन की वो धुप , छाँव , गर्मी , सर्दी , बारिश हैं याद
खट्टा,मीठा , कडुआ ,खारा जिह्वा पर सारे हैं स्वाद
धुप सेंकती माँ का चेहरा , छाँव ढूँतें बाबा दायी
गर्मी का पंखा सिन्नी का और सर्दी की एक रजाई
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
कतली, खीर, कसार, रवे का हलुआ, छोड़ कर आधा ही सफ़र
पीठ पे ढ़ोने शहर , छोड़ कर गाँव का घर, हम आ गए
,.,.,.,.,.,..,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.
हमको मिलता था उपहार जब आती गर्मी की छुट्टी
सुबह सुबह उठने से ज्यादा इस्कूली बस्ते से मुक्ति
बस इक होती थी बिनबोली , पापा से अपनी मनुहार
बरस बाद हो सुलभ हमें भी अम्मा की अम्मा का प्यार
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
पापड़,दवा,अचार के सौ सौ नुस्खे , अब कहा नानी , कहा नानी का घर
पीठ पे ढ़ोने शहर , छोड़ कर गाँव का घर, हम आ गए
,.,.,.,.,.,..,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.,.
माँ ,बहन , भाई , पिता रिश्तें सभी छोड़ कर गाँव का घर हम आ गए -----------------
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online