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समरसता की पले भावना सबका हो यह नारा
यह मानव धर्म हमारा शुभ मानव धर्म हमारा..


जन-जन में फैले विश्व शांति आपस में भाईचारे
मंदिर बांटा मस्जिद बांटी  अब बांटों ना गुरूद्वारे.
राम नाम भव तारेगा सदगुरू का एक इशारा..
यह मानव धर्म हमारा................


सुख दुःख आपस में बांटों बन व्योम,चन्द्र औ तारे
लहर दौड़ समता की जाये बचें कहर से  सारे .
अमन शांति और विश्व एकता यह शुभ कर्म हमारा ..
यह मानव धर्म हमारा.............................


 घर-घर में राम ही पलें बढ़ें और हर घर में माँ सीता
सबकी समता हो घर-घर में चाहे हो कुरान या गीता .
नचिकेता जैसा पुत्र बने इस देश का  बालक सारा ..
 यह मानव धर्म हमारा............


यद्यपि धर्मों के चिन्ह भिन्न पर मूल सभी का एक
है कर्णधार वो ईश्वर ही बस बिखरे नाम अनेक ..
जाति धर्म अरु संप्रदाय में बंटे न देश हमारा ..
 यह मानव धर्म हमारा...........................

शैलेन्द्र कुमार सिंह "मृदु"


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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 13, 2012 at 5:06pm

वाह वाह वाह बहुत सुन्दर गीत रचा है भाई जी
बहुत बहुत बधाई इस गीत हेतु

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 13, 2012 at 3:58pm

अच्छे भावों की सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री शैलेन्द्र कुमार सिंह म्रदु 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 13, 2012 at 1:36pm

शैलेन्द्र जी कटु सत्य को उजागर करती सुंदर रचना बधाई स्वीकारें

Comment by MAHIMA SHREE on December 13, 2012 at 11:36am

बहुत ही उत्तम विचार प्रिय मृदु जी .. बहुत दिनों के बाद आपकी रचना पढने को मिली .. अच्छा लगा .. बधाई स्वीकार करें

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