कवि का आक्रोश
में भी आप सभी सा हूँ
बस थोडा सा बीसा हूँ
बाहर से में फौलादी हूँ
अंदर से में शीशा हूँ
ह्रदय से में कवि सा हूँ
जन्म हुआ तभी से हूँ
बहर से जुगनू लगता हूँ
अंदर से रवि सा हूँ
मेरी कविताओं में वो दम है
जो लोहे को पिघला देंगी
मेरी जोशीली रचनाएँ
मुर्दे को जिला देगीं
कविता पाठ से में
धरती को हिला दूंगा
अपने मार्मिक छंदों से,
कुम्भकर्ण को जगा दूंगा
रोक सकता हूँ मैं
बहते सरिता के नीर को
हवा में रोक लूँगा
कमान से निकले तीर को
सरल समझकर क्यों आप
मेरा मखौल उड़ाते हें
अपनी सोच व् शब्दों से
हम सोई अवाम जगाते हैं
Dr.Ajay Khare Aahat
Comment
अच्छा आक्रोश है सर जी
अपनी सोच व् शब्दों से
हम सोई अवाम जगाते हैं
एक दम दुरुस्त फरमाया है आपने बधाई हो
अपनी सोच व् शब्दों से
हम सोई अवाम जगाते हैं ----इस जोश के बधाई डॉ आहत खरे
KYA BAT HAI JEE
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