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भर जाएगा मेरा समंदर . . . .

हाँ तुमने ही तो किया था वादा,
मेरा समंदर भर दोगे।
जाने किस - किस से तुमने,
माँगा इसके लिए स्नेह।
पर अब भी रीता है,
मेरा समंदर, अधभरा . . .
उजली आँखों से निहारता,
टकटकी लगाए देखता।
शायद तुम अभी भी,
भरने को उत्साहित हो।
मांग लो किसी प्रेमी से,
थोड़ा और स्नेह।
न दे तो छीनो, मिटा दो,
प्रेम की बसती किसी की दुनिया।
उजाड़ दो किसी का घर,
और भर दो मेरा समंदर।
चाहे उसमें प्रेम की जगह,
किसी की खुशियों की दाह हो।
हाँ यही तो होता आया है,
अपनी खुशियों के लिए,
उजाड़ा जाता है दूसरों का घर।
क्या हो पाएगी सुरक्षित,
बस्ती की बसती ये गलियाँ?
क्या गूँजेगी यहाँ भी,
स्नेहिल किलकारियाँ?
हो सकता है, अगर तुम ला सको,
किसी का घर उजाड़े बिना,
स्नेह की उफनती नदियाँ,
तो भर जाएगा मेरा समंदर,
भर जाएगा मेरा समंदर।

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 16, 2011 at 3:01am

मानसिक दृढ़ता की पराकाष्ठा उपालम्भ के रूप में परिलक्षित !  इस सशक्त रचना हेतु अभिनन्दन.

 

//हाँ यही तो होता आया है,
अपनी खुशियों के लिए,
उजाड़ा जाता है दूसरों का घर।
क्या हो पाएगी सुरक्षित,
बस्ती की बसती ये गलियाँ?
क्या गूँजेगी यहाँ भी,
स्नेहिल किलकारियाँ?//

इन अद्भुत पंक्तियों पर मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकारें.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 3, 2010 at 9:35pm
किसी का घर उजाड़े बिना,
स्नेह की उफनती नदियाँ,
तो भर जाएगा मेरा समंदर,
भर जाएगा मेरा समंदर।
वाह वाह वाह, बेहतरीन रचना, सुंदर ख्यालात की अच्छी कविता , बधाई हो ,

कृपया ध्यान दे...

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