हे ! शुभा तुम बहुत सुंदर हो , तुम्हें फुर्सत में बैठकर उस ऊपर वाले ने बनाया है, इंशा अल्लाह आँखें कितनी सुंदर हैं, ये सब सुनते समझते शुभा उम्र की दहलीज धीरे धीरे पार कर रही थी, ऊपर से जितनी चंचल और शोख अन्दर से कही बहुत शांत बिलकुल झील की सतह की तरह.
उसकी छोटी बहन की शादी की तैयारियां चल रही हैं शुभा ने अपनी सबसे प्रिय दोस्त सुप्रिया से बताया -क्यों ? वो तो सुंदर भी नहीं फिर उसकी शादी पहले क्यों..सुप्रिया ने सुनते ही तपाक से कहा,,,नहीं बाबा ऐसी बात नहीं है, मीनू की जॉब ट्रान्सफर हो गयी है दूसरे शहर में और लड़का भी उसी शहर में अच्छी पोस्ट पर है इसीलिए उसकी शादी पहले कर दे रहे हैं, शादी हो जायेगी तो दोनों आराम से रहेंगे, अकेले रहना मुश्किल होगा,,फिर हमारा परिवार तो यहाँ सेटल है,,,चल ठीक है उसके बाद तू अपना नंबर लगा अच्छी जॉब, सर्वगुण संपन्न जो तुझसे शादी करेगा निहाल हो जाएगा, शुभा ने कुछ नहीं कहा बस एक हल्की सी मगर दर्द की लहर उसके चेहरे पर फ़ैल गयी. खूब धूम धड़ाके से शादी में शुभा ने शिरकत की , हर जिम्मेदारी शुभा ने निभाई ,,,सब कुछ हंसी खुशी ख़तम , मीनू अपने पति के साथ शिफ्ट हो चुकी थी,,,और अचानक एक दिन शुभा ने जॉब छोड़ दी,,सुप्रिया ने बार बार पुछा शुभा ने कहा नहीं उसे कुछ दिन माँ, पापा के साथ बाहर जाना है, कब तक लौटेंगे पता नहीं, फिर मीनू की देखभाल भी करनी है , उसके घर में नया मेहमान आने वाला है...सुप्रिया ने अनमने मन से सूना मगर निष्कर्ष कुछ भी नहीं था ,
आज तीन वर्ष बीत चुके थे शुभा की कोई खबर नहीं थी, कहाँ कहाँ नहीं खंगाला , सोशल नेटवर्किंग के माध्यम से उसे सफलता तो मिली मगर आंशिक रूप से, आखिर एक दिन शुभा का सन्देश आया मैं तुझसे मिलने आ रही हूँ , और वो दिन भी आ गया शुभा सुप्रिया दोनों एक ही बिस्तर पर चाय की सिप ले रही थी,,,मगर माहौल ग़मगीन था,,,
शहर छोड़ने के बाद शुभा २ महीने हार्ट के ऑपरेशन के लिए अस्पताल में थी , बहुत बड़ा होल था उसके ह्रदय में , डॉक्टरों को काफी मशक्कत करनी पडी थी, गले से नीचे पेट तक चीर फाड़ के निशान जो बहुत ही बदसूरत बना गए थे उसको..इसीलिए गला बंद कुर्ते पहनना शुरू किया उसने, और फिर बीच बीच में तबियत बनती, बिगडती रही थी, शादी के लिए कई जगह से रिश्ते आये मगर उसकी वास्तविकता के बाद नकारात्मक जबाब, और भी कुछ परेशानी है जिसकी वजह से वो "अधूरी" की संज्ञा से चरितार्थ हो जायेगी ,,कह कर शुभा शांत हो गयी...अब आगे क्या करेगी ..सुप्रिया ने छूटते ही पूछा ,कुछ नहीं गाँव के स्कूल में टीचर की नौकरी है ,,जीवनयापन के लिए काफ़ी है , घर अपना है इसलिए खर्चे के बाद बचत भी हो जाती है और जो अधूरापन है जीवन में उसे वो जिसने मुझे बनाया है वही पूरा करेगा नहीं तो उसकी दुनिया तो है ही हिसाब किताब के लिए,,,चल कही बाहर चलते हैं घूमने के लिए,,,,और दोनों ख़ामोशी से घर से बाहर निकल गयी,,
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बीमारी और विवाह, दो इमोशनल सब्जेकट को एक साथ लाने का प्रयास बढिया है...
सादर....
सुन्दर कथ्य है आदरणीय सुमन जी, पर कुछ अधिक खिंच गया है, इसलिए कसावट कमजोर हो गई है ! शब्दों पर थोड़े संयम की आवश्यकता है ! बहरहाल, अच्छे कथ्य के लिए बधाई !
saurabh ji dhanyabaad .
जीवन की किताब से उद्धृत एक पॉरा. कई ज़िन्दग़ियाँ ऐसे ही चलती हैं, चुपचाप.
संप्रेषणीयता को दिशा दें.
bahut bahut dhanyabaad seema ji
अच्छी कथावस्तु सुमन जी शब्दों के प्रयोग में थोड़ी कंजूसी बारात कर कथा को और सुगठित किया जा सकता है
आपकी लेखनी से विचार और चिंतन के साथ संवेदनशीलता की जो धार बह रही है उसके लिए आपको बहुत बधाई देना चाहूंगी .....
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