For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

SUMAN MISHRA's Blog (23)

मुझे फकत एक शाम चाहिए (अभिलाषा)

मुझे फकत एक शाम चाहिए

बस अपने ही नाम चाहिए

उस तरु की छाया में बैठे

मन में एक विराम चाहिए



कितने अवसादों से घिरकर

थके थके क़दमों से चलकर

कितनी जिम्मेदारी है सर पर

थोडा सा आराम…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on January 23, 2013 at 7:30pm — 6 Comments

मैंने कुछ पंख जोड़ रखे हैं

मैंने कुछ पंख जोड़ रखे हैं 

कुछ रंगीन कुछ बदरंगे हैं

ज़रा हलके से हैं ये थोडे से 

फूलों के संग ही मोड़ रखे हैं



मेरे पंखों में खुशबू फूलों की

उड़ेंगे संग में सुरभि की तरह

मन की उड़ान से अब क्या होगा

सच में उड़ना है बोल सच्चे हैं

कोई कहता है ज्ञान सागर है 

मगर चिंतन में डुबकियां ही नहीं

कोई उड़ता है हवा बाजों सा

कहीं बैसाखियों…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on January 5, 2013 at 11:30pm — 2 Comments

लघु कथा - कीमती पत्र,

तुम लड़की जात हो , तुम्हें अपने दायरे में रहना चाहिए, तुम अनवर की तरह नहीं हो वो तो लड़का है , उसका कुछ नहीं बिगड़ेगा , लेकिन तुम्हारे साथ अगर कुछ उंच नीच हो गया तो हम सबका जीना मुहाल हो जाएगा,,,,ये सीख हमेशा गाँठ बाँध कर रखना.

रोज ही हिदायतों का पुलिंदा शबनम को बाँध कर थमाया जाता था, अब्बू तो दुबई चले गए दो साल पहले , बचे दादी, अम्मी और छोटा भाई अनवर. इस अनवर में छोटे…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on January 3, 2013 at 2:30pm — 3 Comments

"पाषाण"

कहने को तो चाँद तारे,

आसमा की चादरों से

जड़ के सलमा और सितारे

हम को ये भरमा के हारे

"हैं तो ये पाषाण ही ना "

नदियों का तट चाँद मद्धिम

सूर्य की आभा हुयी कम ,

सतह जल की तल निहारे

चांदनी की परत डारे

"तल में बस पाषाण ही ना"

ह्रदय कोमल, मन सु-कोमल

त्वरित धडका, दौड़ता सा

पागलों की भाँती चाहा

फिर भी उसका मन न…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 21, 2012 at 2:00am — 3 Comments

"आहट"

हर धड़कन एक आहट जैसी,

वो जो खोया कहीं मिलेगा ,

हर चेहरे में छाया उसकी ,

नहीं नहीं ये वो तो नहीं है .



क्यों हर कविता प्रेम ग्रन्थ सी

क्यों शब्दों में इन्तजार है,

दर्द नहीं बस आकुलता सी

नहीं नहीं ये नेह नहीं है.



खोना पाना , पाना खोना ,

जीवन की ये परिपाटी सी

कुछ मिलता है खोकर देखो

कुछ मिलने से…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 19, 2012 at 6:30pm — 10 Comments

कहानी : " रोशनी "

चारों तरफ अगर रौशनी का जाल फैला हो मगर इंसान के मन में अँधेरा हो तो शायद एक कदम भी ठीक से नहीं रख सकता. अपनी उलझनों में डूबता उतराता मनुष्य संयम भी खो देता है और परेशानियों के सागर के तल में खुद को खोने लगता है.

ये धर्म गुरु भी ना बस प्रवचन करना जानते हैं और कुछ नहीं , कोई चढ़ावे ना चढ़ाए तब देखो कैसा ज्ञान देते हैं…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 18, 2012 at 12:00am — 2 Comments

लघु कथा : "अधूरी"

हे ! शुभा तुम बहुत सुंदर हो , तुम्हें फुर्सत में बैठकर उस ऊपर वाले ने बनाया है, इंशा अल्लाह आँखें कितनी सुंदर हैं, ये सब सुनते समझते शुभा उम्र की दहलीज धीरे धीरे पार कर रही थी, ऊपर से जितनी चंचल और शोख अन्दर से कही बहुत शांत बिलकुल झील की सतह की तरह. 

उसकी छोटी बहन की शादी की तैयारियां चल रही हैं शुभा ने अपनी सबसे प्रिय दोस्त सुप्रिया से बताया -क्यों ? वो तो सुंदर भी…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 17, 2012 at 2:30pm — 6 Comments

आज चांदनी नहीं अन्धेरा

आज चांदनी नहीं अन्धेरा

खतम हुआ सूरज का फेरा

आधा अधूरा चाँद ना आया

राह पे तम ने जाल विछाया

स्वेद बूँद बस मोती छलका

कदम थका तो ख़तम प्रहर था

कांटे विछे या पुष्प सुरभि हो

मलय तेज या…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 17, 2012 at 12:30am — 4 Comments

हरसिंगार की खुशबू हो तुम

मेरे मन के दरख्त की डाली

झुकी झुकी सी, फूलों सी है

लरज लरज कर बाहों जैसी

याद तुम्हारी कर लेते हैं .

अब यादों की बदली से हम

भीग भीग कर सूख रहे हैं,

एक तुम्हारी चाहत ही है

जिसे अभी तक सींच रहे है

एक अंजुरी नयन नीर से,

एक एक पल जैसे हो पीर से

हर पल हरसिंगार की खुशबू

एक दिलासा मन के तीर (किनारा)…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 10:00pm — 8 Comments

लघु कथा : "अधिकार"

सूरज  बदहवास सा खेतों के मेड़ों पर चला जा रहा था , बचपन में पिता का साया सर से छिन गया था , बहनों की शादी हो चुकी थी, जिनसे उसके उम्र का फासला बहुत था, उम्र अभी १७ वर्ष मगर जिम्मेदारियों का पहाड़ सर पर, गरीबी हो तो इंसान के लिए छोटी छोटी जरूरतें भी पहाड़ जैसी ही लगती हैं. छोटे चाचा ने सारी जमीने अपने नाम करा ली थी..सुरजू,,,,यही नाम था घर में सब प्यार से विषाद…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 9:30pm — 2 Comments

लघु कथा : गुमराह

श्रुति ..हाँ यही नाम था उसका , अभी नयी नयी आयी थी कॉलेज में , सभी उसे विस्मित नजरों से देखते थे, देखना भी था, वो किसी से बात नहीं करती थी, शायद बडे शहर से पढ़ कर आयी थी इसीलिए हम छोटे शहर के स्टूडेंट उसे पसंद नहीं थे, बस वो क्लास में आती. प्रोफेसर का  लेक्चर सुनती और खाली समय में माइल & बून का उपन्यास लेकर पढ़ती रहती. कुछ…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 12:30pm — 4 Comments

स्वप्न तिरोहित मन की बातें

स्वप्न तिरोहित मेरी आँखें ,

क्या तुमको अच्छी लगती हैं?

कुछ डोरे भूले भटके से ,

नयनो में तिरते रहते हैं.

कुछ पलाश के फूल रखे हैं

सुर्ख लाल गहरे से रंग के

अग्निशिखा की छाया जैसी,

निशा द्वार पर जलते बुझते .

भटको मत अब नयन द्वार पर

भ्रमर भ्रमित से रह जाओगे

निशा भैरवी तान सुनेगी ,

अधर पटल सुन दृग खोलेंगे,

गीले बालों…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 11:00pm — 13 Comments

कुछ कहना था तुमसे ...इन्तजार

कुछ कहना था तुमसे मन की

जब आओगे तब कह दूँगी

कब मन ये मेरे पास रहा,

यादों को बाँध के रख लूँगी 



अब दूर देश के…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 6:00pm — 2 Comments

लघु कथा : पगली

आज ऑफिस के लिए निकलते हुए देर हो गयी थी, रास्ते के ट्रेफ्फिक सिग्नलों ने तो नाक में दम कर दिया था, जल्दी से हरे होने का नाम ही नहीं लेते थे, जब ऑफिस को देर होती है तब सारे नियम क़ानून भूल जाते हैं, कही ना कही गलत है मगर ये मानविक भाव है, मगर सिग्नल या सड़क जाम का एक फायदा है , बहुत सारे…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 5:00pm — 2 Comments

हैं मोड़ बहुत सारे यूँ तो ...

हैं मोड़ बहुत सारे यूँ तो

पर दिशा मुझे तय करनी है,

पर मैं ही अकेला पथिक नहीं

आशा सच हो ये परखनी है

सुनता ही नहीं कोई मन की

अब खुद से खुद को सुनना है

संयम गर अपना साथी हो

फिर मंजिल पे ही मिलना है

कुछ ख्वाब नहीं सोने देते

हर पल बस करते हैं बातें

शुरुआत लक्छ्य की आज अभी

सूरज की बात ना तकनी है,

वो आता है हर सुबह…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 1:30am — 9 Comments

लघु कथा : परिवर्तन

ये लो महारानी जी आज नदारद हो गयीं , इन लोगों के मिजाज का कोई ठिकाना ही नहीं है..सुबह सुबह "गौरम्मा" के ना आने से मन खिन्न हो गया , गौरम्मा हमारी काम वाली 

हमेशा तो कह कर जाती थी , माँ ( दछिन भारत में येही संबोधन आदर में देते हैं ) हम कल नहीं आ पायेगा , मगर आज सुबह के ११ बज रहे हैं कोई खबर ही नहीं . दो तीन दिन से मैं उसे कुछ बुझी बुझी देख रही थी , मगर मेहमानों की…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 1:00am — 15 Comments

अब हाथ उनका थाम लें

बचपन की देहरी लांघ कर

सच्चे हुए जज्बात जब

रस्ते जो थे अनजान तब

अब मंजिलों का नाम दें

अब हाथ उनका थाम लें .

जिनकी वजह जीवन मिला

इश्वर तुम्हारा शुक्रिया

अब कर्म की दुनिया में हम

अपना भी योगदान दें

अब हाथ उनका थाम लें

थोड़ी हंसी मासूम सी

मेरी वजह रंगीन सी

माँ से थी जिद्द थोड़ी सुलह

जीवन के मसले हल करें

अब हाथ…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 13, 2012 at 1:30am — 9 Comments

लघु कथा : "घमंडी"

शानू उठो, देखो पापा शहर से आ गए हैं,,मगर नीद थी की उसे उठने ही नहीं दे रही थी , आज उसे गाँव आये हुए १५ दिन हो गए थे, नंगे पाँव बागों में फिरना कच्चे, अधपके आमों की लालच में , धुल मिटटी से गंदी हुयी फ्रॉक की कोई परवाह नहीं , पूरी आजादी, और फ़िक्र हो भी क्यों उसने अपना इम्तिहान बहुत मन लगाकर दिया था, प्रथम आयी तो ठीक मगर उस सुरेश को नहीं आने देना है , येही मलाल लिए गर्मी की…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 12, 2012 at 7:00pm — 13 Comments

लघु कथा - "हिम्मत"

आज सुबह से सौरभ उदास था, आज कहाँ जाएगा नौकरी के लिए, घर में किसी को पता नहीं था की उसके नौकरी छूट गयी है, माँ, पिता की दवा लानी है आज और जेब पूरी खाली, अगर सौरभ अपने नौकरी छूटने की बात बता दे,,तो शायद घर में बीमारी और बढ़ जायेगी,,,आखिर नयी चिंता का जन्म हो जाएगा...येही सोचते सोचते जाने कबतक सड़क के किनारे वो भ्रमित सा खडा रहा,,उसे कुछ समझ में नहीं…

Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 12, 2012 at 3:00pm — 13 Comments

माँ जब तेरी याद आती है

माँ जब तेरी याद आती है,

बारिश में भीगा मैं जब जब

वो हिदायतें याद आती हैं 

तुमने दी थीं प्यार से मुझको…



Continue

Added by SUMAN MISHRA on December 10, 2012 at 11:30am — 1 Comment

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
4 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
14 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
18 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
18 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ पर गीत जग में माँ से बढ़ कर प्यारा कोई नाम नही। उसकी सेवा जैसा जग में कोई काम नहीं। माँ की…"
20 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आदरणीय धर्मेन्द्र भाई, आपसे एक अरसे बाद संवाद की दशा बन रही है. इसकी अपार खुशी तो है ही, आपके…"
yesterday
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

शोक-संदेश (कविता)

अथाह दुःख और गहरी वेदना के साथ आप सबको यह सूचित करना पड़ रहा है कि आज हमारे बीच वह नहीं रहे जिन्हें…See More
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service