आज चांदनी नहीं अन्धेरा
खतम हुआ सूरज का फेरा
आधा अधूरा चाँद ना आया
राह पे तम ने जाल विछाया
स्वेद बूँद बस मोती छलका
कदम थका तो ख़तम प्रहर था
कांटे विछे या पुष्प सुरभि हो
मलय तेज या वेग पवन का
कभी अश्रु छलके कोरों से
भेज दो वापस बिन बोलों के
ढलकेंगे तो कह देंगे सब
जीवन मर्म बहुत हलके से
जीवन पथ मिश्रित सुख दुःख से
कर्म त्याग ना हटेंगे पथ से
गति है तो गतिमान हो जीवन
प्राण है जब तक बज्र है ये तन .
Comment
shri ajay ji abhaar aapka
गति है तो गतिमान हो जीवन
प्राण है जब तक बज्र है ये तन . lines geeta ka gyan de rahi he bahut sunder badhai suman ji
शुक्रिया अरुण जी सादर...
गहरी सोंच उम्दा प्रस्तुति
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