For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघु कथा - "हिम्मत"

आज सुबह से सौरभ उदास था, आज कहाँ जाएगा नौकरी के लिए, घर में किसी को पता नहीं था की उसके नौकरी छूट गयी है, माँ, पिता की दवा लानी है आज और जेब पूरी खाली, अगर सौरभ अपने नौकरी छूटने की बात बता दे,,तो शायद घर में बीमारी और बढ़ जायेगी,,,आखिर नयी चिंता का जन्म हो जाएगा...येही सोचते सोचते जाने कबतक सड़क के किनारे वो भ्रमित सा खडा रहा,,उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था..

उसके सामने ही एक वृध्ह व्यक्ति आया और एक कपड़ा विछा कर सड़क पर बैठ गया बड़े से झोले में से आलू की सब्जी जिसे वो "कचालू" का नाम दे रहा था, और कुछ कचौरियां ..उसी समय स्कूल छूटा, बच्चों ने आकर उसके पास भीड़ लगा ली, देखते देखते उसकी दूकान ख़तम और वो वृद्ध अपना सामान समेटते हुए उठ खडा हुआ,,,, सौरभ खडा खडा सोचता रहा , क्या इतना आसान है काम करना,,,आज उसे हिम्मत जुटानी ही पड़ेगी अपनी नौकरी की बात घर में बताकर , लेकिन दुःख के साथ नहीं सकारात्मक तरीके से उसे खुद का कुछ काम करना है ,,,दूसरों के तेहत खुद को बांधना नहीं चाहता,,उसके घर के बरामदे में अपनी पसंद की दूकान लगाएगा,,,घर के सामने स्कूल के बच्चों के लिए,,अपने लिए, अपने परिवार के लिए,....थोड़ी बहुत जमा पूँजी की राशि को बढ़ाना है उसे,,,अपने परिवार के उज्जवल भविष्य के लिए.

Views: 1089

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dipak Mashal on December 13, 2012 at 9:51pm

यह काफी बेहतर है मगर प्राकृतिकता से थोड़ी दूर, क्योंकि यह स्पष्ट नहीं है कि नायक नौकरी क्या करता था। कोई इंजीनियर या मैनेजर नौकरी छूटने पर इतनी आसानी से यह निर्णय नहीं लेगा, खासकर हमारे देश में। बधाई।

Comment by MAHIMA SHREE on December 13, 2012 at 11:43am

 नमस्कार सुमन जी ..बहुत ही सार्थक अंत करती कथा / वास्तव में सभी युवा जिन्हें किसी भी कारणवश नौकरी छुट गयी या नौकरी नहीं मिल पाती उनमे स्व-व्यवसाय की हिम्मत आ जाए तो बेरोजगारी की बहुत बड़ी समस्या का सामाधान हो सकता है /

बहुत-2 बधाई आपको

Comment by पीयूष द्विवेदी भारत on December 13, 2012 at 8:49am

सकरात्मक अंत से पूर्ण लघुकथा के लिए बधाई आदरणीय सुमन जी !

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on December 13, 2012 at 7:45am

आशावादी जोश जगाती सुन्दर लघुकथा!

Comment by SUMAN MISHRA on December 12, 2012 at 10:58pm

आदरनीय प्रियजन बचपन में हम जो स्कूल में खाते थे वो हमारे द्वारा ही दिया गया नाम होता था और हम बच्चे अपने मन उन चट्खारेनुमा शब्द के जरिये ही उस पदार्थ को पसंद करते थे, आलू की चटपटी सब्जी को कचौरी के साथ ,,,well जो घर में माँ बनाती है उबले आलू में छोटे छोटे छेद करके इमली के मसाले के साथ,,उसकी बात कुछ और है ,,,मगर स्कूल या रोड साइड खाने की बात ही कुछ और है ,,,सादर

Comment by Shubhranshu Pandey on December 12, 2012 at 10:13pm

बढिया सकारात्मक लघु कथा पर बधाई. 

गणेश भैया, जिस कचालू को आप जान रहे हैं वह आलू के राइता के ज्यादा नजदीक है.   


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 12, 2012 at 8:15pm

हमारी तरफ उबले आलू को पतले टुकड़ों में काट कर दही में डुबा कर रखा जाता है और उसमे भुना जीरा पाउडर , काली मिर्च, काला नमक और लाल मिर्च पाउडर मिला देतें है ।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 12, 2012 at 8:11pm

बहुत ही सार्थक सन्देश देती लघुकथा , विचारपूर्ण लघुकथा हेतु बधाई आदरणीया सुमन जी ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 12, 2012 at 7:22pm

इस तरह की रचनाओं की समाज को आवश्यकता है. सकारात्मक टोन के साथ समाप्त होती इस लघुकथा हेतु बधाई स्वीकार करें, सुमनजी.

एक बात,  प्रस्तुत कथा के कथ्य से अलग. .. ’कचालू’ शब्द बहुत दिनों बाद सुनने को मिला तो बहुत ही अच्छा लगा है. मुँह में पानी भर आया है. मग़र आपकी कथा का ’कचालू’ वह नहीं जिसे वाकई ’कचालू’ कहते हैं. ’कचालू’ वस्तुतः चाट का हिस्सा होता है,  पलाश के पत्ते या किसी दोने में उबले आलूओं की कतरनें (स्लाइस्ड), इमली के पानी और कालेनमक-लाल मिर्च-जीरा की बुरकन से समृद्ध.. यानि ’कचालू’ !  अब तो ये अक्सर देखने में भी नहीं आता.

लघुकथा हेतु पुनः बधाई.. .

Comment by SUMAN MISHRA on December 12, 2012 at 5:56pm

आप सबके प्रोत्साहन से कोशिश करूंगी,,,सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.लक्ष्मण सिंह मुसाफिर साहब,  अच्छी ग़ज़ल हुई, और बेहतर निखार सकते आप । लेकिन  आ.श्री…"
2 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.मिथिलेश वामनकर साहब,  अतिशय आभार आपका, प्रोत्साहन हेतु !"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"देर आयद दुरुस्त आयद,  आ.नीलेश नूर साहब,  मुशायर की रौनक  लौट आयी। बहुत अच्छी ग़ज़ल…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
" ,आ, नीलेशजी कुल मिलाकर बहुत बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई,  जनाब!"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।  गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। भाई तिलकराज जी द्वार…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई तिलकराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और विस्तृत टिप्पणी से मार्गदर्शन के लिए आभार।…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तितलियों पर अपने खूब पकड़ा है। इस पर मेरा ध्यान नहीं गया। "
5 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी नमस्कार बहुत- बहुत शुक्रिया आपका आपने वक़्त निकाला विशेष बधाई के लिए भी…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय लक्ष्मण धामी मुसाफिर जी, बहुत बढ़िया ग़ज़ल हुई है. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर "
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जू भाई, बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है आपने. शेर दर शेर दाद ओ मुबारकबाद कुबूल फरमाएं. सादर "
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service