For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघु कथा : "घमंडी"

शानू उठो, देखो पापा शहर से आ गए हैं,,मगर नीद थी की उसे उठने ही नहीं दे रही थी , आज उसे गाँव आये हुए १५ दिन हो गए थे, नंगे पाँव बागों में फिरना कच्चे, अधपके आमों की लालच में , धुल मिटटी से गंदी हुयी फ्रॉक की कोई परवाह नहीं , पूरी आजादी, और फ़िक्र हो भी क्यों उसने अपना इम्तिहान बहुत मन लगाकर दिया था, प्रथम आयी तो ठीक मगर उस सुरेश को नहीं आने देना है , येही मलाल लिए गर्मी की छुट्टियों में गाँव आ गयी, पापा बाद में आयेंगे शानू के रिजल्ट के बाद,,और साथ में वापस जाने की तैयारी भी मगर अभी तो कोई फ़िक्र नहीं,,,कोई कह नहीं सकता ये शानू शहर के बड़े नामी गिरामी स्कूल की छात्रा है,,,, खैर अधखुली आँखों से देखा एक लकड़ी की स्लेट जैसी , उसपर चांदी से कुछ बनाया हुआ. मगर कुछ ख़ास नहीं , हाँ ख़ास था तो वो चोकलेट का डिब्बा जो जरूर पापा शहर से लाये थे. आखिर आँख खुल ही गयी और फिर पापा ने बताया की शानू को ये शील्ड हर विषय में पूरे पूरे नंबर लाने पर मिली है, येही अकेली छात्रा थी, लेकिन शानू के लिए शील्ड कोई ख़ास तोहफा नहीं था इससे अच्छा तो टिफिन बॉक्स या water bottle होती. सभी पापा की बातें सुन रहे थे और शानू उस चोकलेट के बॉक्स में कितनी टाफियां थी गिन रही थी,,,मगर जब सुरेश का नाम सुना तो उसके कान खड़े हो गए,,,पापा कह रहे थे ,,पता है जब मैं तुम्हारे स्कूल गया तो सुरेश भाग कर मेरे पास आया और मुझे प्रणाम किया उसके चेहरे की खुशी देखते बनती थी , उसने बताया अंकल शानू को चांदी की शील्ड मिली है ,,,उसे पूरे स्कूल में सबसे अछे नंबर मिले हैं,,मैं second पोजीशन पर हूँ ,,,आप मेरी तरफ से उसे बधाई दे दीजियेगा,,,और ये सुनते ही मन अजीब सा हो गया , शानू को समझ में आ गया था विनम्रता कहीं अधिक प्रभावी है जीवन पर ,,,घमंड इंसान को इंसान नहीं बनने देता है.

Views: 1008

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वीनस केसरी on December 15, 2012 at 2:34am

प्रथम आने की अति आकांक्षा को किस प्रकार बालमन में भर दी जाती है लघु कथा इसका सुंदर उदाहरण प्रस्तुत कर रही है

परन्तु इस चाह को "घमंड" नाम देना अनुचित है .....

Comment by Dipak Mashal on December 14, 2012 at 3:17pm

शुभ्रांशु जी ठीक कहते हैं। एक बालमन की सोच इस तरह नहीं होती। जिस उम्र के पात्र की बात कहनी होती है उसकी उम्र में पहुंचकर सोचना होता है।

Comment by Shubhranshu Pandey on December 14, 2012 at 3:05pm

एक प्रयास...बधाई. 

कहानी के मुख्य चरित्र की उमर पर ध्यान दे कर अगर सारी परिस्थितियों को गढा जाये तो बात उभर कर ज्यादा सही तरीके से सामने आयेगी. कहानी में उच्च बिन्दु का कथन और उसके पानी के बोतल या डब्बे के विचार से मेल नहीं रख पा रहे हैं...

सादर

Comment by SUMAN MISHRA on December 14, 2012 at 11:26am

saurabh sir aabhar aapka


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2012 at 11:35pm

सुमनजी,  आपकी प्रस्तुत लघुकथा के परिप्रेक्ष्य में हम भी बहुत कुछ सीख-समझ पा रहे हैं. इस हेतु हार्दिक धन्यवाद. सही ही कह रही होंगी आप. ’प्रारंभिक शिक्षा’ के क्षेत्र में अवश्य ही ऐसा बहुत कुछ होता होगा जिसकी चर्चा आप कर रही हैं.

सादर

Comment by SUMAN MISHRA on December 13, 2012 at 11:25pm

कविता और लेखों में रूचि है..मगर लघु कथा इसी मंच से शुरुआत की है मैंने,,,,सादर,,,,

Comment by SUMAN MISHRA on December 13, 2012 at 11:24pm

सफलता दर सफलता जीवन में प्रतिद्वंदिता जरूर लाती है विशेषकर शिछा के छेत्र में, सहपाठियों के बीच ये भावना तो आती ही है मैं तुमसे श्रेष्ठ हूँ, तुम मुझसे आगे नहीं बढ़ सकते....ये स्वाभाविक सी बात है, गर्व से ऊंचा तो होता है मगर साथ ही साथ एक अहंकार का कण मन में जरूर सम्वेषित होती है....

Comment by Dipak Mashal on December 13, 2012 at 9:35pm

अच्छा सन्देश है, लेकिन कई जगह लघुकथा अस्पष्ट है और काफी अपरिपक्व है। एक-दो ड्राफ्ट में बेहतर होने की संभावना जरूर है। शीर्षक भी उपयुक्त नहीं।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 13, 2012 at 9:27pm

प्रतिद्वन्द्विता यदि संकेन्द्रित हो जाय तो आवश्यकता से अधिक संवेदनशील बना देती है. वह प्रारम्भिक अवस्था में ही घमण्ड का रूप कैसे हो गयी भाई ? वह तो सतत सफलताओं का असंतुलित प्रतिफल हुआ करता है. बहरहाल, प्रस्तुतिकरण हेतु बधाई.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 13, 2012 at 8:20pm

सुमन मिश्र जी आपको शायद पहली बार ही पढ़ रही हूँ कहानी पर प्रयास अच्छा लगा बाकी विद्वजनों ने कह ही दिया प्रयास रत रहें और बेहतर लिख सकती हैं शुभ कामनाएं 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service