बचपन की देहरी लांघ कर
सच्चे हुए जज्बात जब
रस्ते जो थे अनजान तब
अब मंजिलों का नाम दें
अब हाथ उनका थाम लें .
जिनकी वजह जीवन मिला
इश्वर तुम्हारा शुक्रिया
अब कर्म की दुनिया में हम
अपना भी योगदान दें
अब हाथ उनका थाम लें
थोड़ी हंसी मासूम सी
मेरी वजह रंगीन सी
माँ से थी जिद्द थोड़ी सुलह
जीवन के मसले हल करें
अब हाथ उनका थाम लें.
सोचो जरा इस धरा का
सीने में कितने छेद हैं
रखती है सबको प्यार से
थोड़ा सा भी ना भेद है
अब माँ का कर्ज अदा करें
अब हाथ उनका थाम लें |
Comment
सोचो जरा इस धरा का
सीने में कितने छेद हैं
रखती है सबको प्यार से
थोड़ा सा भी ना भेद है
अब माँ का कर्ज अदा करें
अब हाथ उनका थाम लें |
सुमन जी, कितना अच्छा संदेश दिया है आपने!
काश इसे संसार में हर कोई सुने। बधाई!
विजय निकोर
बहुत सुन्दर भाव भरी रचना पर बधाई आदरणीया सुमन जी
एक अनुरोध : कृपया हिंदी रचनाओं पर टिप्पणी और प्रतिउत्तर टिप्पणियों को अंग्रेजी शब्दों के प्रयोग से बचे ।
एक वैचारिक और संदेशपरक रचना की प्रस्तुति है सुमन जी, बहुत बहुत बधाई ।
thanks a lot my respected friends
सुमन जी बेहद सुन्दर रचना बधाई स्वीकारें
bahut badia rachna badhai ki aap hakdaar he
thanks seema di
सोचो जरा इस धरा का
सीने में कितने छेद हैं
रखती है सबको प्यार से
थोड़ा सा भी ना भेद है
अब माँ का कर्ज अदा करें
अब हाथ उनका थाम लें |..........बहुत सुन्दर बात कही सुमन जी .......
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