For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघु कथा : गुमराह

श्रुति ..हाँ यही नाम था उसका , अभी नयी नयी आयी थी कॉलेज में , सभी उसे विस्मित नजरों से देखते थे, देखना भी था, वो किसी से बात नहीं करती थी, शायद बडे शहर से पढ़ कर आयी थी इसीलिए हम छोटे शहर के स्टूडेंट उसे पसंद नहीं थे, बस वो क्लास में आती. प्रोफेसर का  लेक्चर सुनती और खाली समय में माइल & बून का उपन्यास लेकर पढ़ती रहती. कुछ हफ्ते के बाद हमारी दोस्त रीना के थोडा करीब आयी, रीना ने उससे दोस्ती तो गाँठ ली मगर पूरी तरह से नहीं, पहले रीना हमें फ़ोन करती थी तो  पढाई की बातें , टीचर्स की बातें मगर अब उसे श्रुति की बातें ,,,कुछ ख़ास तो नहीं मगर इतना पता लगा श्रुति कुछ नशा वशा करती है. हम सब सुनकर अवाक से रह गए. आखिर कॉलेज के सामने होस्टल है उसमे नशा करने की परमिशन कैसे मिली, कोई उसका साथी भी तो नहीं जो उसे इस काम में मदद करेगा...खैर हमें क्या, मगर फिर भी मन में उत्कंठा जोर मारती रही, और एक दिन मुझे मौक़ा मिल ही गया .

इकाईनोडरमेटा के प्रोफेसर ने क्लास टेस्ट लिया और उसमे मुझे पूरे मार्क्स मिले, क्योंकि ये B .SC  प्रथम वर्ष का पहला टेस्ट था और मुझे पूरे मार्क्स, सहपाठी छात्र -छात्राओं ने बधाई दी और उनमे श्रुति भी थी, उसके नंबर बहुत कम थे, मैंने उससे आग्रह किया अगर वो चाहे तो मैं उसकी सहायता कर सकती हूँ,..और फिर धीरे धीरे वो हमारे करीब आ गयी,,,एक दिन उसे रविवार को अपने घर बुलाया, उसने कुछ वेस्टर्न पहन रखा था, माँ ने अच्छा सा नाश्ता ( समोसे और चाय) खिलाया , हम दोनों खाकर छत पर चले गए जहां मेरा अपना प्रिय अधयन्न कछ था , अचानक श्रुति ने सिगरेट निकाल ली और लाइटर से जला कर कश लगाने लगी, मुझे बहुत ख़राब लगा,,,उसने कहा उसके माँ - पिता का तलाक हो चुका है और वो दोनों की दया पर निर्भर है ,,दोनों ने अपना घर बसा लिया है, मैंने कहा जब तक वो तुम्हें मदद कर रहे हैं तुम अपने जीवन को संवारो तबाह मत करो, आखिर विवाह के बाद तो वैसे भी लडकियां पराई हो जाती हैं, (मुझे पता था वो किन मनोभावों से गुजर रही है -जो की आसान नहीं था किसी के लिए ) श्रुति तुम मेधावी हो , अपने पैरों पर खडा होना है तुम्हें, रही बात माँ, पिता की तुम मेरे परिवार को अपना परिवार समझो,,,मगर ये गंदी आदत से खुद को निजात दो ...माँ तब तक आ चुकी थी हमें खाने के लिए बुलाने,....माँ ने उसे प्यार से खाना खिलाया और आगे भी आते रहने के लिए आग्रह किया...मुझे एक बहन मिल गयी थी और मेरे परिवार को एक नया सदस्य .गुमराह थी ज़रा सी..मगर राह मिल गयी उसे.

Views: 552

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shubhranshu Pandey on December 18, 2012 at 6:59pm

आदरणीय, रीना के प्रसंग को आप ना दे कर श्रुति के एकांत प्रियता के प्रसंग को और बढा सकती थी...सादर

Comment by SUMAN MISHRA on December 15, 2012 at 10:04pm

आभारी हूँ ..अविनाश सर जी, लक्ष्मन प्रसाद जी....सादर

Comment by AVINASH S BAGDE on December 15, 2012 at 8:54pm

गुमराह थी ज़रा सी..मगर राह मिल गयी उसे.

प्रेरक लघुकथा सुमन मिश्रा  मैम ।।।वाह!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 15, 2012 at 8:06pm

गुमराह को राह मिली, अच्छी कहानी, बधाई सुमन मिश्रा जी 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service