श्रुति ..हाँ यही नाम था उसका , अभी नयी नयी आयी थी कॉलेज में , सभी उसे विस्मित नजरों से देखते थे, देखना भी था, वो किसी से बात नहीं करती थी, शायद बडे शहर से पढ़ कर आयी थी इसीलिए हम छोटे शहर के स्टूडेंट उसे पसंद नहीं थे, बस वो क्लास में आती. प्रोफेसर का लेक्चर सुनती और खाली समय में माइल & बून का उपन्यास लेकर पढ़ती रहती. कुछ हफ्ते के बाद हमारी दोस्त रीना के थोडा करीब आयी, रीना ने उससे दोस्ती तो गाँठ ली मगर पूरी तरह से नहीं, पहले रीना हमें फ़ोन करती थी तो पढाई की बातें , टीचर्स की बातें मगर अब उसे श्रुति की बातें ,,,कुछ ख़ास तो नहीं मगर इतना पता लगा श्रुति कुछ नशा वशा करती है. हम सब सुनकर अवाक से रह गए. आखिर कॉलेज के सामने होस्टल है उसमे नशा करने की परमिशन कैसे मिली, कोई उसका साथी भी तो नहीं जो उसे इस काम में मदद करेगा...खैर हमें क्या, मगर फिर भी मन में उत्कंठा जोर मारती रही, और एक दिन मुझे मौक़ा मिल ही गया .
इकाईनोडरमेटा के प्रोफेसर ने क्लास टेस्ट लिया और उसमे मुझे पूरे मार्क्स मिले, क्योंकि ये B .SC प्रथम वर्ष का पहला टेस्ट था और मुझे पूरे मार्क्स, सहपाठी छात्र -छात्राओं ने बधाई दी और उनमे श्रुति भी थी, उसके नंबर बहुत कम थे, मैंने उससे आग्रह किया अगर वो चाहे तो मैं उसकी सहायता कर सकती हूँ,..और फिर धीरे धीरे वो हमारे करीब आ गयी,,,एक दिन उसे रविवार को अपने घर बुलाया, उसने कुछ वेस्टर्न पहन रखा था, माँ ने अच्छा सा नाश्ता ( समोसे और चाय) खिलाया , हम दोनों खाकर छत पर चले गए जहां मेरा अपना प्रिय अधयन्न कछ था , अचानक श्रुति ने सिगरेट निकाल ली और लाइटर से जला कर कश लगाने लगी, मुझे बहुत ख़राब लगा,,,उसने कहा उसके माँ - पिता का तलाक हो चुका है और वो दोनों की दया पर निर्भर है ,,दोनों ने अपना घर बसा लिया है, मैंने कहा जब तक वो तुम्हें मदद कर रहे हैं तुम अपने जीवन को संवारो तबाह मत करो, आखिर विवाह के बाद तो वैसे भी लडकियां पराई हो जाती हैं, (मुझे पता था वो किन मनोभावों से गुजर रही है -जो की आसान नहीं था किसी के लिए ) श्रुति तुम मेधावी हो , अपने पैरों पर खडा होना है तुम्हें, रही बात माँ, पिता की तुम मेरे परिवार को अपना परिवार समझो,,,मगर ये गंदी आदत से खुद को निजात दो ...माँ तब तक आ चुकी थी हमें खाने के लिए बुलाने,....माँ ने उसे प्यार से खाना खिलाया और आगे भी आते रहने के लिए आग्रह किया...मुझे एक बहन मिल गयी थी और मेरे परिवार को एक नया सदस्य .गुमराह थी ज़रा सी..मगर राह मिल गयी उसे.
Comment
आदरणीय, रीना के प्रसंग को आप ना दे कर श्रुति के एकांत प्रियता के प्रसंग को और बढा सकती थी...सादर
आभारी हूँ ..अविनाश सर जी, लक्ष्मन प्रसाद जी....सादर
गुमराह थी ज़रा सी..मगर राह मिल गयी उसे.
प्रेरक लघुकथा सुमन मिश्रा मैम ।।।वाह!
गुमराह को राह मिली, अच्छी कहानी, बधाई सुमन मिश्रा जी
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