For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कहने को तो चाँद तारे,
आसमा की चादरों से
जड़ के सलमा और सितारे
हम को ये भरमा के हारे
"हैं तो ये पाषाण ही ना "

नदियों का तट चाँद मद्धिम
सूर्य की आभा हुयी कम ,
सतह जल की तल निहारे
चांदनी की परत डारे
"तल में बस पाषाण ही ना"

ह्रदय कोमल, मन सु-कोमल
त्वरित धडका, दौड़ता सा
पागलों की भाँती चाहा
फिर भी उसका मन न पिघला
" है तो वो पाषाण ही ना "

ह्रदय माँ का , गंगा यमुना
बह रहा है प्यार इतना
नेह से कुछ  दूर होकर
हूँ सुबकती याद करके
"मैं नहीं पाषाण हूँ माँ "

Views: 331

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 22, 2012 at 4:03pm

आपकी उर्वर मनस को बारहा बधाइयाँ, सुमनजी. आदरणीया सीमाजी ने उचित सुझाव दिये हैं. मैं उनका भी आभारी हूँ. एक सीमा के बाद रचनाकार के लिए रचनाकर्म एक सुगढ़ आदत होनी चाहिये, लत नहीं.

//देर रात में बनायी थी ये कविता - संयोजित नहीं थी.//

इस पर अब क्या कहा जा सकता है ? 

Comment by SUMAN MISHRA on December 22, 2012 at 11:01am

जी प्रिय सीमा दी...कुछ ऐसा ही....आपने इतने ध्यान से पढ़ा और और आभारी हूँ आपके परामर्श के लिए,,,देर रात में बनायी थी ये कविता - संयोजित नहीं थी....बहुत बहुत धन्यबाद  सीमा दी

Comment by seema agrawal on December 21, 2012 at 8:30pm

ह्रदय कोमल, मन सु-कोमल
त्वरित धडका, दौड़ता सा
पागलों की भाँती चाहा
फिर भी उसका मन न पिघला
" है तो वो पाषाण ही ना...........दिल को छू गयी आपके ये पंक्तिया सुमन जी 

ह्रदय माँ का , गंगा यमुना
बह रहा है प्यार इतना
नेह की दूर होकर हूँ सुबकती
"मैं नहीं पाषाण हूँ माँ ".....................अंतिम बंद जो सबसे अधिक संवेदनशील है उसने आप शायद पंक्तियों को ठीक से संयोजित नहीं कर सकी हैं और सही CUT न मिल पाने से अर्थ बिखर गया 

ह्रदय माँ का , गंगा यमुना
बह रहा है प्यार

इतना नेह की

दूर होकर

हूँ सुबकती
"मैं नहीं पाषाण हूँ माँ ".....................................इस बंद को एक बार फिर से देखिये 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Dayaram Methani commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (ग़ज़ल में ऐब रखता हूँ...)
"आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी, गुरु की महिमा पर बहुत ही सुंदर ग़ज़ल लिखी है आपने। समर सर…"
10 hours ago
Dayaram Methani commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - तो फिर जन्नतों की कहाँ जुस्तजू हो
"आदरणीय निलेश जी, आपकी पूरी ग़ज़ल तो मैं समझ नहीं सका पर मुखड़ा अर्थात मतला समझ में भी आया और…"
11 hours ago
Shyam Narain Verma commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post करते तभी तुरंग से, आज गधे भी होड़
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर और उम्दा प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"आदाब।‌ बहुत-बहुत शुक्रिया मुहतरम जनाब तेजवीर सिंह साहिब।"
Oct 1
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक बधाई आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी।"
Sep 30
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"हार्दिक आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी साहब जी। आपकी सार गर्भित टिप्पणी मेरे लेखन को उत्साहित करती…"
Sep 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"नमस्कार। अधूरे ख़्वाब को एक अहम कोण से लेते हुए समय-चक्र की विडम्बना पिरोती 'टॉफी से सिगरेट तक…"
Sep 29
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"काल चक्र - लघुकथा -  "आइये रमेश बाबू, आज कैसे हमारी दुकान का रास्ता भूल गये? बचपन में तो…"
Sep 29
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"ख़्वाबों के मुकाम (लघुकथा) : "क्यूॅं री सम्मो, तू झाड़ू लगाने में इतना टाइम क्यों लगा देती है?…"
Sep 29
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-114
"स्वागतम"
Sep 29
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"//5वें शेर — हुक्म भी था और इल्तिजा भी थी — इसमें 2122 के बजाय आपने 21222 कर दिया है या…"
Sep 28
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-171
"आदरणीय संजय शुक्ला जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल है आपकी। इस हेतु बधाई स्वीकार करे। एक शंका है मेरी —…"
Sep 28

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service