हर धड़कन एक आहट जैसी,
वो जो खोया कहीं मिलेगा ,
हर चेहरे में छाया उसकी ,
नहीं नहीं ये वो तो नहीं है .
क्यों हर कविता प्रेम ग्रन्थ सी
क्यों शब्दों में इन्तजार है,
दर्द नहीं बस आकुलता सी
नहीं नहीं ये नेह नहीं है.
खोना पाना , पाना खोना ,
जीवन की ये परिपाटी सी
कुछ मिलता है खोकर देखो
कुछ मिलने से ही खो जाता
मुझे है आहट उन यादों की
जो हर पल दस्तक देती हैं
मैं जो खोलूँ द्वार मिलन के
मन के भीतर मेरे हंसती...
Comment
मुझे है आहट उन यादों की
जो हर पल दस्तक देती हैं
मैं जो खोलूँ द्वार मिलन के
मन के भीतर मेरे हंसती...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना बधाई स्वीकारें.
बहुत खूब सुमन जी ..सुन्दर रचना सौरभ जी ने जो इंगित किया है उस पर ध्यान दीजिये
हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं
आप सभी का आभार,,,,आप सब की उदारता से अभिभूत हूँ ,,,,
वाह आदरणीया प्रस्तुत चित्र और रचना दोनों में बेहतरीन समानता है बधाई.
आप सभी श्रेष्ठ जन हैं आदरणीय हैं..आप सबकी समीछा सुंदर शब्दों की माला होती है, जिनसे ही बहुत कुछ सीखने को मिलता है,,,बहुत बहुत आभार,,,,आप सब को मेरा प्रणाम,,,,
वाह चित्र के अनुरूप रचना या रचना के अनुरूप चित्र. इन पूरक संज्ञाओं के प्रस्तुतिकरण के लिए बधाई.
आपकी पद्य-प्रक्रिया अति उर्वर मनस-भूमि से अत्यंत उदारतापूर्वक संजीवनी लेती है, इसमें कोई संदेह नहीं. लेकिन.. .. खैर, जब आप संयत होइयेगा तबही.. तबतक के लिए, आपके शब्द-संजाल में हम भी उलझे फिरें..
शुभेच्छाएँ
सुन्दर भाव अभिव्यक्ति के लिए बधाई सुमन जी
क्यों हर कविता प्रेम ग्रन्थ सी
क्यों शब्दों में इन्तजार है,
दर्द नहीं बस आकुलता सी
नहीं नहीं ये नेह नहीं है.---दिल किसी के लिए धड़कता अगले ही क्षण खुद से ही छुपाता नहीं नहीं ये नेह नहीं है दिल खुद से ही संवाद करता भावनाओं का ये लुकाछिपी का खेल बहुत सुन्दरता से रचना में ढाला है बहुत अच्छा लिखती हैं आप प्राची जी की बात पर गौर करना बाकी शुभ कामनाएं
ji prachi ji thodi samay ki kamee ki vajah se....aapne bilkul sahee kahaa,......sabki rachnayen padnee chahiye...poori koshish karoongi....
i
प्रिय सुमन जी
इस सुन्दर भाव प्रवण रचना के लिए बधाई स्वीकारे.
इधर आपकी कई रचनाएं पड़ने का मौक़ा मिला.
आपके पास सुन्दर भाव हैं, सुन्दर शब्द है, पर कविताओं में जो रवानी चाहिए वो बीच में गुम हो जाती है, प्रवाह डगमगा जाता है.
आप औरों की रचनाएं पड़ें और उनपर भी अपनी राय दें, नवगीतों को पड़ें , ज्ञान के आदानप्रदान से अनायास ही रचनाएं आवश्यक तत्वों को पा कर पूर्णता की और बढ़नें लगती हैं .
शुभेच्छाएँ.
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