"अपनी कमजोरियों का शिकार आदमी,
बस दलीलों से है ज़ोरदार आदमी.. बारहा माफ़ करता रहे, वो खुदा, गलतियां जो करे बार-बार.... आदमी... कोई ख्वाहिश नहीं और फरिश्तो मेरी, ढूँढने दो मुझे बस वो चार आदमी... ऐसी हूरें और उसपे खुदा की नज़र, कैसे जन्नत में पाए क़रार आदमी... शक है नीयत पे तेरी ऐ वाइज़ मुझे, करने जाता है क्या पांच बार आदमी?? फिर भला आप पंडित जी क्या कीजिये, तोड़ कर फेंक दे ग़र जुन्नार आदमी...?? बुद्ध, ईशा, मुहम्मद, सफ़र कर चले, रह गया सिर्फ बन के गुबार... आदमी... सांस लेने की उसको भी फुर्सत तो दो, इक खुदा और पीछे हज़ार आदमी... जिंदगी हाशिये पर फिसलती गई, आदमी ने किया दर-किनार आदमी... हर तरफ ज़हन-ओ-दिल आह भरते हुए, किस पे दिल का निकाले गुबार आदमी... मौत लेगी हिसाब एक दिन सांस का, जिंदगी ले के आया उधार आदमी... जूझता..रेंगता..खुद घिसटता हुआ, अपने ही आप में इक कतार आदमी... एक लम्हे के एवज़ में इक सांस है, कैसे छोड़ेगा ये रोज़गार आदमी... |
Comment
सीमा जी पहले तो बहुत बहुत शुक्रिया ... आपने मुझे प्रेरित किया यहाँ जुड़ने और फिर पोस्ट करने के लिए ... आप की मदद के बिना यह संभव नहीं था ..कुछ तो मेरा लापरवाह नेचर और कुछ जानकारी का अभाव, मगर आपने एक एक स्टेप ऐसे समझाया जैसे कोई अच्छा टीचर अपने स्टूडेंट्स को बार बार बताता है ...
और आपने हमेशा मेरे शायर और कवी मन का हौसला बढ़ाया है ....उसके लिए शब्दों का अभाव महसूस कर रहा हूँ।
:)
वाह जनाब क्या शानदार ग़ज़ल कही है
कई शेर हासिले ग़ज़ल के दावेदार हैं ......
मतला बेहद पसंद आया ......
अपनी कमजोरियों का शिकार आदमी,
बस दलीलों से है ज़ोरदार आदमी..
और यह अशआर भी ....
ऐसी हूरें और उसपे खुदा की नज़र,
कैसे जन्नत में पाए क़रार आदमी...
बुद्ध, ईशा, मुहम्मद, सफ़र कर चले,
रह गया सिर्फ बन के गुबार... आदमी...
सांस लेने की उसको भी फुर्सत तो दो,
इक खुदा और पीछे हज़ार आदमी...
मौत लेगी हिसाब एक दिन सांस का,
जिंदगी ले के आया उधार आदमी...
आपकी ग़ज़ल पढ़ कर ये तो पता चल रहा है कि यह तरही की ग़ज़ल है मगर गिरह का शेअर नहीं दिखा .... :)))))
मौत लेगी हिसाब एक दिन सांस का,
जिंदगी ले के आया उधार आदमी.. wah !! ji Bahut khoob रजनीश जी!
रजनीश जी यह आपकी पहली पोस्टिंग है इस मंच पर बधाई और शुभकामनाये .......
बार बार पढी आपकी ग़ज़ल सोच और विचार के दरवाजे पर बेख़ौफ़ दस्तक देते अश'आर बहुत कुछ कह रहे हैं .....हर शेर अजूबा एक बार में संतुष्टि नहीं होती ......किस शेर को QUOTE करूँ और किसे छोडूं
अपनी कमजोरियों का शिकार आदमी,
बस दलीलों से है ज़ोरदार आदमी....मतले से ही असलियत पर प्रहार
कोई ख्वाहिश नहीं और फरिश्तो मेरी,
ढूँढने दो मुझे बस वो चार आदमी..........वाह वाह ढूँढने दो मुझे बस वो चार आदमी अंततः बस यही चाहिए
जूझता..रेंगता..खुद घिसटता हुआ,
अपने ही आप में इक कतार आदमी.........बात इस तरह भी कही जाती है......
अभी कई बार पढूंगी और फिर हाज़िर होती हूँ ...इस ग़ज़ल पर
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