मेरे दिलबर का जो भी ढब है.. ग़ज़ब है.
रूठ जाने का जो सबब है.. ग़ज़ब है.
ज़िंदगी से गिला बहुत है हमे, पर,
साँस लेने की जो तलब है.. ग़ज़ब है…
आम इंसान हूँ मै,तुम सा ..तुम्ही सा,
लोग कहते हैं तू अजब है…ग़ज़ब है.
वो है संग-दिल, है बेरहम, है सितमगर,
उसपे भी लखनवी अदब है.. ग़ज़ब है.
वो जिसे आज तक किसी ने न देखा,
ज़र्रे-ज़र्रे मे उसकी छब है …ग़ज़ब है.
हमने पूछा था,”चाँद, कब है अमावस?”
चाँद खुद पूछ बैठा, कब है??..ग़ज़ब है...
Comment
मित्रवर आपकी यह ग़ज़ल मेरे जहन में घर कर गई है बार बार यादों में दस्तक देती है, बहुत जल्द कुछ इस पर लिखना पड़ेगा. सादर.
वाह क्या बात है मज़ा आ गया इक नई किस्म की ग़ज़ल प्रस्तुति की है आपने, जितनी बार पढ़ता हूँ उतना अच्छा लगता है. हार्दिक बधाई दिली दाद कुबुलें आदरणीय. सादर
इस गज़ब में सब है गज़ब है
वाह गजब की गजल लिखी है आपने । बधाइयाँ | :)
वाह-वाह ! पू्री ग़ज़ल में ताज़ग़ी है. मतले में तो ’कहा भी और न कहा’ का सुन्दर अंदाज़ बन पड़ा है ! वाह !
शेर दर शेर कहन सुरीली लेकिन वज़नदार होती चली गयी है. रिवायती खयालों को आज के संदर्भ से कैसे पायेदार बनाते हैं आपकी ग़ज़ल इसका सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत करती है. साँस लेने का तलब और ज़िन्दग़ी का होते जाना.. ग़ज़ब-ग़ज़ब ! लेकिन, मज़ा तो आखिरी शेर है, जो वाकई पूरी ताक़त के साथ अपनी मौज़ूदग़ी जताता हुआ सामने आता है. जीने के अंदाज़ का इससे बेहतर उदाहरण इस बह्रोज़मीन पर और क्या होगा !
कहने का अंदाज़ भा गया, भाई रजनीशजी. वाह ! बने रहें और कहते रहें.
बधाई.
बहुत बदिया ग़ज़ल लिखी है रजनीश जी.. हार्दिक बधाई
यह दो शेर बहुत बहुत पसंद आये
ज़िंदगी से गिला बहुत है हमे, पर,
साँस लेने की जो तलब है.. ग़ज़ब है…..........बहुत खूब
वो जिसे आज तक किसी ने न देखा,
ज़र्रे-ज़र्रे मे उसकी छब है …ग़ज़ब है................ यह भी बहुत सुन्दर.
प्रिय रजनीश,
सबसे पहले तो एक गज़ब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .......
आपके हर शेर में खासियत यह हेई की वो बात करते हुए लग रहें, जो ग़ज़ल की सबसे बड़ी खूबी कही जाती है कुछ भी सप्रयास लिखा सा नहीं लगता है | रदीफ़ बहुत मनोरंजक और उसे निभाने का ढंग गज़ब
मेरे दिलबर का जो भी ढब है.. ग़ज़ब है.
रूठ जाने का जो सबब है.. ग़ज़ब है......बहुत बढ़िया मतला
ज़िंदगी से गिला बहुत है हमे, पर,
साँस लेने की जो तलब है.. ग़ज़ब है......दोनों मिसरों का कनेक्शन वाह गज़ब है
आम इंसान हूँ मै,तुम सा ..तुम्ही सा,
लोग कहते हैं तू अजब है…ग़ज़ब है........:)
वो है संग-दिल, है बेरहम, है सितमगर,
उस पे भी लखनवी अदब है.. ग़ज़ब है......वाह
वो जिसे आज तक किसी ने न देखा,
ज़र्रे-ज़र्रे मे उसकी छब है …ग़ज़ब है.…ग़ज़ब है.....दिल खुश कर देने वाली बात कही है ज़र्रे-ज़र्रे मे उसकी छब है …ग़ज़ब है
हमने पूछा था,”चाँद, कब है अमावस?”
चाँद खुद पूछ बैठा, कब है??..ग़ज़ब है......अरे !!!!!!!!
बिलकुल नए अंदाज़ की प्रस्तुति बहुत नयापन और ताज़गी है आपकी कहन में
यूं ही लिखते रहिये .........खुश रहिये
वाह बहुत सुन्दर अशार गजब है. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
वाह वाह वाह
क्या बात है बहुत सुन्दर साहब
बधाई आपको
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