For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मेरे दिलबर का जो भी ढब है.. ग़ज़ब है.
रूठ जाने का जो सबब है.. ग़ज़ब है.

ज़िंदगी से गिला बहुत है हमे, पर,
साँस लेने की जो तलब है.. ग़ज़ब है…

आम इंसान हूँ मै,तुम सा ..तुम्ही सा,
लोग कहते हैं तू अजब है…ग़ज़ब है.

वो है संग-दिल, है बेरहम, है सितमगर,
उसपे भी लखनवी अदब है.. ग़ज़ब है.

वो जिसे आज तक किसी ने न देखा,
ज़र्रे-ज़र्रे मे उसकी छब है …ग़ज़ब है.

हमने पूछा था,”चाँद, कब है अमावस?”
चाँद खुद पूछ बैठा, कब है??..ग़ज़ब है...

Views: 578

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 7, 2013 at 5:29pm

मित्रवर आपकी यह ग़ज़ल मेरे जहन में घर कर गई है बार बार यादों में दस्तक देती है, बहुत जल्द कुछ इस पर लिखना पड़ेगा. सादर.

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 6, 2013 at 1:52pm

वाह क्या बात है मज़ा आ गया इक नई किस्म की ग़ज़ल प्रस्तुति की है आपने, जितनी बार पढ़ता हूँ उतना अच्छा लगता है. हार्दिक बधाई दिली दाद कुबुलें आदरणीय. सादर

इस गज़ब में सब है गज़ब है

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on January 6, 2013 at 12:25pm

 वाह गजब की गजल लिखी है आपने । बधाइयाँ |  :)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 5, 2013 at 10:43pm

वाह-वाह ! पू्री ग़ज़ल में ताज़ग़ी है. मतले में तो ’कहा भी और न कहा’ का सुन्दर अंदाज़ बन पड़ा है ! वाह ! 

शेर दर शेर कहन सुरीली लेकिन वज़नदार होती चली गयी है. रिवायती खयालों को आज के संदर्भ से कैसे पायेदार बनाते हैं आपकी ग़ज़ल इसका सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत करती है. साँस लेने का तलब और ज़िन्दग़ी का होते जाना.. ग़ज़ब-ग़ज़ब ! लेकिन, मज़ा तो आखिरी शेर है, जो वाकई पूरी ताक़त के साथ अपनी मौज़ूदग़ी जताता हुआ सामने आता है. जीने के अंदाज़ का इससे बेहतर उदाहरण इस बह्रोज़मीन पर और क्या होगा !

कहने का अंदाज़ भा गया, भाई रजनीशजी. वाह !  बने रहें और कहते रहें.

बधाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 5, 2013 at 3:27pm

बहुत बदिया ग़ज़ल लिखी है रजनीश जी.. हार्दिक बधाई 

यह दो शेर बहुत बहुत पसंद आये 

ज़िंदगी से गिला बहुत है हमे, पर, 
साँस लेने की जो तलब है.. ग़ज़ब है…..........बहुत खूब 

वो जिसे आज तक किसी ने न देखा, 
ज़र्रे-ज़र्रे मे उसकी छब है …ग़ज़ब है................ यह भी बहुत सुन्दर.

Comment by seema agrawal on January 5, 2013 at 2:04pm

प्रिय रजनीश,

सबसे पहले तो एक गज़ब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .......

आपके हर शेर में खासियत यह हेई की वो बात करते हुए लग रहें, जो ग़ज़ल की सबसे बड़ी खूबी कही जाती है कुछ भी सप्रयास लिखा सा नहीं लगता है | रदीफ़ बहुत मनोरंजक और उसे निभाने का ढंग  गज़ब 

मेरे दिलबर का जो भी ढब है.. ग़ज़ब है. 
रूठ जाने का जो सबब है.. ग़ज़ब है......बहुत बढ़िया मतला 
ज़िंदगी से गिला बहुत है हमे, पर, 
साँस लेने की जो तलब है.. ग़ज़ब है......दोनों मिसरों का कनेक्शन  वाह गज़ब है 

आम इंसान हूँ मै,तुम सा ..तुम्ही सा, 
लोग कहते हैं तू अजब है…ग़ज़ब है........:)

वो है संग-दिल, है बेरहम, है सितमगर, 
उस पे भी लखनवी अदब है.. ग़ज़ब है......वाह 


वो जिसे आज तक किसी ने न देखा, 
ज़र्रे-ज़र्रे मे उसकी छब है …ग़ज़ब है.…ग़ज़ब है
.....दिल खुश कर देने  वाली  बात कही है ज़र्रे-ज़र्रे मे उसकी छब है …ग़ज़ब है

हमने पूछा था,”चाँद, कब है अमावस?” 
चाँद खुद पूछ बैठा, कब है??..ग़ज़ब है......अरे !!!!!!!! 

बिलकुल नए अंदाज़ की प्रस्तुति बहुत नयापन और ताज़गी  है आपकी  कहन में 

यूं ही लिखते रहिये .........खुश रहिये 

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 5, 2013 at 8:48am

वाह बहुत सुन्दर अशार गजब है. हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 4, 2013 at 4:01pm

वाह वाह वाह
क्या बात है बहुत सुन्दर साहब
बधाई आपको

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service