ओ तरुणी
मेरे आंसू
तेरे दुख
कम नहीं कर पाएँगे
मेरी संवेदनाएँ
तेरे जख्म नहीं भर पायेंगे
तार -तार हैं सपने तेरे
रोम रोम में जहर भर गए
कुंठित होगा मन का कोना
घृणा के ज्वार पे तुम सवार
बदले की आग में भी जलोगी
ना कुछ करने की विवशता
आत्महत्या के लिए प्रेरित करेगी
ओ मेरी अनजान सखी
एक विनती
मेरी बस सुन लो
आसुंओ की काल कोठरी में
जीवन मत खोना
गमो की पोटली मत ढोना
सच मानो
ईश्वर ने तुम्हें गर
नरक दिया है तो
स्वर्ग का रास्ता भी
कंही खुला रखा होगा
बस
हिम्मत मत हारना
तप कर तुझे
सोना बनना है
ओ दामिनी
कल तक
जो भी सपने थे तेरे
भूल उसे अब
आगे बढ़ना होगा
लाचार तुम नहीं
व्यवस्था पंगु है
पहचान अपनी शक्ति को
तुझे ध्रुव तारा सा चमकना होगा
पोंछ कर सारी तस्वीर
दे अपनी तरुणाई को
नया आधार
चुन नए पथ को
रख मजबूती से
अपने कदमो को
नाप नया आकाश
तुम जानो या ना जानो
मानो या ना मानो
हमारी दुआएं
है तुम्हारे आस पास
तुम्हारे साथ /
Comment
नमस्कार अनंत जी .. आपका बहुत-2 धन्यवाद / समय देने और विचार करने केलिए . आभार
आपका स्वागत है आदरणीय श्याम जी .. धन्यवाद
आदरणीया प्राची जी , नमस्कार
आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया .रचना के भाव् को अनुमोदन प्रदान कर रहा है / आप सुधीजनों का स्नेह बना रहे यही कामना है / आपकी हार्दिक आभारी हूँ /
आदरणीय विजय निकोर सर , सादर नमस्कार
आपके स्नेहयुक्त विचार को जान कर बहुत अपनापन लगा / इतनी दूर होकर भी मातृभूमि से आपका जुडाव , और यंहा की समस्यायों के प्रति चिंता वन्दनीय है / आपसे सहमत हूँ / जनता अभी जागरूकता तो दिखा रही है पर बस चिंता यही है अल्पकालिक नहीं हो . भविष्य के लिए अच्छे परिणाम निकले तभी सार्थकता है / आपकी ह्रदय से आभारी हूँ / स्नेह बनाए रखे
आदरणीया प्रदीप सर , सादर नमस्कार
भावो के साथ जुडाव आपका हुआ , मन थोडा हल्का हुआ और हमसब की प्रार्थना फलीभूत होगी . विश्वास है / हार्दिक आभार /
आदरणीया सीमा जी बहुत आभारी हूँ ..
महिमा श्री जी बेहद गहन रचना है, न चाहते हुए भी बहुत कुछ सोंचने को मजबूर करती बेहतरीन प्रस्तुति बधाई स्वीकारें
बधाई।
पाशविक दुर्व्यवहार से आत्मविश्वास विहीन हुई अपनी ही एक अनजानी परन्तु अभिन्न बहिन के दर्द को आत्मसात कर नकारात्मकता के मकड़ जाल से बाहर निकलने को प्रेरित करती रचना के लिए हार्दिक आभार प्रिय महिमा जी
आदरणीया महिमा जी:
आपकी यह सशक्त रचना पढ़ कर मन उदास भी हुआ और फिर उसको
धीरज भी मिला। अच्छा है कि जनता की आवाज़ में इस समय दम है,
क्रोध है, रोष है ... शायद मंद-बुद्धि के खराब लोगों में परिवर्तन आए।
ईश्वर ने तुम्हें गर
नरक दिया है तो
स्वर्ग का रास्ता भी
कंही खुला रखा होगा
आशाप्रद भावों के लिए और अच्छी कविता के लिए अनेकानेक बधाई।
सादर और सस्नेह,
विजय निकोर
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