तन्हाई चीखती है कहीं
पगलाई-सी हवा धमक पड़ती है ।
अंधेरे में भी दरवाजे तक पहुँच कर
बेतहाशा कुंडियाँ खटखटाती है।
अकेला सोया पड़ा इंसान अपने ही भीतर हो रहे शोर से
घबड़ा कर उठ बैठता है ।
मोबाइल में चौंक कर देखता है समय
“रात के ढ़ाई ही तो अभी बजे हैं “ बुदबुदाता है।
सन्नाटा उसकी दशा पर मुस्कुराता है।
उधर दुनिया के कहीं कोने में
भीड़ भूख-प्यास से बेकाबू हो कर सड़को पर नहीं निकलती,
सामूहिक आत्महत्याएं कर रही होती…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on August 24, 2015 at 8:30pm — 9 Comments
कभी किसी की चुप्पी
कितना उदास कर जाती है।
साँसे भी भारी होती जाती है।
मन हो जाता है उस झील- सा
जो कब से बारिश के इंतजार मे थम सी गई हो
और उसकी लहरें भी उंघ रही हो किसी किनारे बैठ के
शाम भी तो धीरे से गुजरी है अभी कुछ फुसफूसाती हुई
उसे भी किसी की चुप्पी का खयाल था शायद।
मौलिक व अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on July 2, 2015 at 8:00pm — 9 Comments
2122 2122 2122 212
जिंदगी से जो चली अपनी ढ़िठाई दोस्तों
खाक में ही उम्र सारी यूँ बिताई दोस्तों
अम्न की वंशी बजाई और गाये गीत भी
नफरतों की होलिका हमने जलाई दोस्तों
जब कभी दुश्वारियाँ आयी हमारी राह में
एक माँ की ही दुआ फिर काम आई दोस्तों
दोस्ती है एक नेमत टूटना अच्छा नहीं
साथ चलने में कहाँ कोई बुराई दोस्तों
हो भला सबका यहाँ मेरी दुआ है बस यही
ना करें कोई भी मज़हब की लड़ाई…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on June 13, 2015 at 12:00pm — 13 Comments
“हैलो! क्या चल रहा है ?”
“सर! अभी प्रमुख नेताओं का भाषण बाकी है, लगता है लम्बा चलेगा । भीड़ भी काफी है।“
"ओके!"
“हैलो! , सर ! मंच के ठीक सामने कुछ दूरी पर एक पेड़ है, उस पर एक आदमी फांसी लगाने की कोशिश कर रहा है।“
“अरे! “सोच क्या रहे हो ? , कैमरा घुमाओ उसकी तरफ !, फोकस करो! , हिलना भी मत जबतक................!”
मौलिक व अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on May 1, 2015 at 7:02pm — 20 Comments
“माँ! तुम कह रही थी न, शादी कर ले ! सोचता हूँ, कर ही लूँ।“
“कोई पसंद है क्या ? बता दे ?”
“हाँ पसंद तो है । मेरे साथ काम करती है। तुम्हें और पिता जी को ऐतराज तो नहीं होगा ?“
“हमें क्यों ऐतराज होगा भला ! तेरी खुशी में ही हमारी खुशी है। पर हाँ! लड़की मांगलिक नही होनी चाहिए!, अपने से छोटी जाति की भी नहीं , और स्वागत में कोई कमी भी न हो !“
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on April 29, 2015 at 6:30pm — 20 Comments
1.बरसों के बाद खुद को यूँ पहचान तो गया
सीने में दफ्न इश्क जुनूं जान तो गया
2.बीती तमाम उम्र तेरी आरज़ू में बस
चाहत भरा सफ़र हो ये अरमान तो गया
3.हमको कहाँ खबर थी कि दिल हार जाएगें
छो़ड़ो चलो कि दिल तेरे कुर्बान तो गया
4.मांगा खुदा से जिसको था सजदों में बारहा
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया
5. हमसे न हो सके थे जमाने के चोंचले
सब खुश हुए कि दौड़ से नादान तो गया
यह भी…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on March 31, 2015 at 2:00pm — 14 Comments
बहर-
2122 1212 22
खुशनुमा ये सफ़र है क्या कहिये
साथ मेरे वो गर है क्या कहिये
आ गई जान पर है क्या कहिये
चाक मेरा जिगर है क्या कहिये
इश्क में जीत कुछ नहीं होती…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on March 1, 2015 at 11:30am — 29 Comments
हमेशा दौड़ में पिछड़ा रहा हूँ
मगर चिन्तन में मैं कछुआ रहा हूँ
खिलौना मैं नहीं जो खेल लोगे
हूँ इंसा मैं भी ये समझा रहा हूँ
सितम ढाओं, गुमां कर लो जी भर के
ये मत कहना कि मैं पछता रहा हूँ
मैं मुफ़लिस ही सही कोई नहीं गम
हमेशा दिल से ही सच्चा रहा हूँ
तेरी तस्वीर पलकों में सजा के
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on October 20, 2014 at 10:00am — 5 Comments
पटियाला-शांत शहर और दिलवाले लोग (यात्रा वृतांत-१) से आगे …
संगीत-संध्या में धमाल करते-करते और रात्री-भोजन के सुस्वादु व्यंजनों के दौरान भी एक दूसरे की जम कर खिंचाई हुयी और भोजपुरी गाने के बोल पर ठहाके पर ठहाके लगे | आ. बागी जी, आ. सौरभ जी ने कई भोजपुरी-ठुमके वाले…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on October 2, 2014 at 8:30am — 14 Comments
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी के ज्येष्ठ सुपुत्र श्री ऋषि प्रभाकर जी के मंगल विवाह में शामिल होने का अवसर प्राप्त हुआ | 25 सितम्बर की शाम को लेडीज संगीत के आयोजन में शामिल होना तय था | हमारी ट्रेन दिल्ली से राजपुरा तक थी वहाँ से हमने बस पटियाला तक की ली फिर पंजाबी यूनिवर्सिटी बस स्टैंड पर हमें प्यारे से रोबिन और मनु जी लेने आ गए | इस बीच में लगातार प्रभाकर सर, आ. गणेश जी बागी से…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on September 30, 2014 at 11:30am — 33 Comments
क्या आपको याद है ... आपने आखरी बार कब डुगडुगी की आवाज सुनी थी ?कब अपनी गली या घर के रास्ते में एक छोटी सी सांवली लड़की को दो मामूली से बांस के फट्टियों के बीच एक पतली सी रस्सी पर चलते देखा और फिर हैरतअंगेज गुलाटी मारते, बिना किसी सुरक्षा इन्तमाजात के | सोचिये , दिमाग पर जोर डालिए !!!
चलिए आज मैं याद दिलाती हूँ | याद है बचपन में जब स्कुल से आकर आप अपना बस्ता फेंक ,माँ के हिदायत पर हाथ मुँह धोकर ,कपडें बदल कर अपने दोस्तों के साथ झटपट खेलने जाने के मुड में होते थे तब…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on August 28, 2014 at 6:34pm — 15 Comments
पिता
गर बेटियाँ है तुम्हारा स्वाभिमान
फिर क्यों
समाज के विद्रूपताओं से भयभीत होकर
रोकते हो उसकी हर उड़ान
बनाने क्यों नहीं देते उसकी
स्वयं की साहसी पहचान
असुरक्षा के डर से
देना चाहते हो उसको
किसी का साथ
खर्च कर लाखोँ लाते हो
छान बिन कर एक जोड़ी अदद हाथ
जो बनेगा तुम्हारी बेटी का आजीवन रक्षक
पर क्या होता है सही ये फैसला
हर बार
वक्त के साथ देख बेटियों की दुर्दशा
क्या…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on June 15, 2014 at 3:00pm — 8 Comments
बहर ... २२२ २२२ २२
वो जब से सरकार हुए हैं
सब कितने लाचार हुए हैं
जन सेवा अब नाम ठगी का
सपनोँ के व्यापार हुए हैं
धोखे देते बन के साधू
ऐसे ठेकेदार हुए हैं
मज़हब के भी नाम पे देखो
कितने अत्याचार हुए हैं
जो थे अब तक झुक कर चलते
वो अबकी खुददार हुए हैं
मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on December 25, 2013 at 6:30pm — 32 Comments
सुनो
क्या कहती हैं
माताएं , बहने , सखी सहेलियाँ
वक्त बदल चुका है
सुनना , समझना और विमर्श कंरना
सीख लो
स्वामित्व के अहंकार से
बाहर निकलो
सहचर बनो
सहयात्री बनो
नहीं तो ?
हाशिये पे अब
तुम होगे
हमारे पाँव जमीं पर हैं
और इरादे मजबूत
सोच लो ?
मौलिक व् अप्रकाशित
Added by MAHIMA SHREE on September 20, 2013 at 8:02pm — 14 Comments
Added by MAHIMA SHREE on September 20, 2013 at 6:21pm — 34 Comments
सावधान रहो
सतर्क रहो
किस किस से
कब कब
कहाँ कहाँ
हमेशा रहो
हरदम रहो
जागते हुए भी
सोते हुए भी
क्या कहा ?
ख्वाब देखती हो
किसने कहा था
बंद करो
कल्पना की कूची से
आसमान में रंग भरना
उड़ना चाहती हो ?
क़तर डालो पंखो को
अभी के अभी
ओफ्फ तुम मुस्कुराती हो
अरे तुम तो खिलखिलाती भी…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on August 2, 2013 at 10:30pm — 43 Comments
ओ तरुणी
मेरे आंसू
तेरे दुख
कम नहीं कर पाएँगे
मेरी संवेदनाएँ
तेरे जख्म नहीं भर पायेंगे
तार -तार हैं सपने तेरे
रोम रोम में जहर भर गए
कुंठित होगा मन का कोना
घृणा के ज्वार पे तुम सवार
बदले की आग में भी जलोगी
ना कुछ करने की विवशता
आत्महत्या के लिए प्रेरित करेगी
ओ मेरी अनजान…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on December 23, 2012 at 6:30pm — 23 Comments
जानती हूँ
या कहो
बखूबी समझती हूँ
तुम्हारे चुपचाप रहने का सबब
हमारे बीच समझ का
जो अनकहा पुल है
कभी सच्चा लगता है और
कभी दिवास्वप्न सा
दुविधा की कई बातें हैं
जज्बातों की कई सौगाते भी हैं
जो अकेले बैठ के
अपने मन मंदिर में
कोमल अहसासों से पिरोयें हैं
साझा करने को कभी
पुल के इस पार तो आओ
दो बातें तो कर जाओ
जानती हूँ तुम्हें
या नहीं जानती की
उलझन तो सुलझा जाओ
Added by MAHIMA SHREE on December 5, 2012 at 4:22pm — 22 Comments
सांसे जब तक चलती हैं
तब तक चलता है
सुख- दुःख का एहसास
मान -अपमान की पीडाएं
उंच -नीच , जात -पात का भेद
सम्पन्नता -विपन्नता का आंकलन
नहीं मिलने मिलाने के उलाहने
प्रतियोगिता की अंधी दौड़
एक दुसरे को मिटा डालने का षड़यंत्र
सांसे जब तक टूटती हैं
उस क्षण को
ग्लानी से भरता है मन
और छोड़ देता है तन को
बची रह जाती है
उसकी कुछ यादें
अंततः कुछ भी नहीं बचता शेष
और फिर से शुरू हो…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on June 3, 2012 at 9:46pm — 26 Comments
नियति तू कब तक खेल रचाएगी
क्या हम सचमुच हैं
तेरे ही कठपुतले
तू जैसा चाहेगी
वैसा ही पाठ सिखाएगी
नियति तू कब तक खेल रचाएगी
कभी कुछ खोया था
कंही कुछ छुट गया था
कभी छन् से कुछ टूट गया था
भीतर जख्मो के कई गुच्छे हैं
गुच्छो के कई सिरे भी हैं
पर उनके जड़ो का क्या
तेरा ही दिया खाद्य औ पानी था
नियति तू कब तक खेल रचाएगी
कंही कुछ मर रहा है
कंही कुछ पल रहा…
ContinueAdded by MAHIMA SHREE on June 3, 2012 at 9:29pm — 11 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |