For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बहर ... २२२ २२२ २२ 

वो जब से सरकार हुए हैं

सब कितने लाचार हुए हैं

जन सेवा अब नाम ठगी का

सपनोँ के व्यापार हुए हैं

धोखे देते बन के साधू

ऐसे ठेकेदार हुए हैं

मज़हब के भी नाम पे देखो

कितने अत्याचार हुए हैं

जो थे अब तक झुक कर चलते

वो अबकी खुददार हुए हैं

 

मौलिक  एवं अप्रकाशित 

Views: 909

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Madan Mohan saxena on December 3, 2014 at 3:17pm

जन सेवा अब नाम ठगी का
सपनोँ के व्यापार हुए हैं

धोखे देते बन के साधू
ऐसे ठेकेदार हुए हैं
बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी बेह्तरीन अभिव्यक्ति !शुभकामनायें.

Comment by नादिर ख़ान on December 31, 2013 at 11:24pm

जन सेवा अब नाम ठगी का

सपनोँ के व्यापार हुए हैं

मज़हब के भी नाम पे देखो

कितने अत्याचार हुए हैं

आदरणीया महिमा जी, बहुत खूब कहा आपने और अपने ही अंदाज़ मे ....लाजवाब ।

आपको नये साल की अग्रिम शुभकामनायें ।

Comment by MAHIMA SHREE on December 29, 2013 at 8:07pm

जरुर :))))))आदरणीय बृजेश जी वैसे भी सर्दियों में गुड़ खाना सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है  ...:)))

आपका हार्दिक आभार. सादर

Comment by बृजेश नीरज on December 27, 2013 at 8:25pm

//बस काली मिर्ची से ही काम चलाना पड़ा//

मैं भविष्य के लिए सचेत हो गया! आगे से गुड़ लेकर बैठूँगा! :))))))))))))))):

लाजवाब ग़ज़ल हुई है! आपको ढेरों बधाई!

Comment by MAHIMA SHREE on December 27, 2013 at 7:19pm

आदरणीय सौरभ सर , नमस्कार .. ओबिओ का सीखने सिखाने का वातावरण.. और उस पर  आप गुरुजनों का हर विधा पर जोर  ... विद्यार्थी कितना भी जिद्दी हो तब भी उसके दिमाग में बैठा ही दिया जाता है ..दूसरी विधाओं पर भी हाथ आजमाओ भाई .. :))))

आपकी बहुमूल्य प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा थी ... सच कहूँ तो अतुकांत में आदत है जी भर के कडवाहट निकलने  की (करेले के जूस में लाल मिर्ची   :))))).. पर गज़ल  में तो कसमसा कर रह  गयी   बस काली मिर्ची से ही काम चलाना पड़ा :))))) 

 

बरहाल हर नवोदित को ओबिओ पर आपके विस्तृत सूक्ष् विश्लेषण की प्रतीक्षा रहती है ...आपकी प्रतिक्रिया ने आसमान पर पहुँचा दिया ... आदरणीय .. मन प्रसन्न है ..प्रयास सार्थक हुआ .. आशीर्वाद देते रहें .. सादर

 

Comment by MAHIMA SHREE on December 27, 2013 at 7:03pm

आदरणीय ब्रह्मचारी सर .. आपका आशीर्वाद मिला आभारी हूँ  .. स्नेह बनाये रखे सादर ..

Comment by MAHIMA SHREE on December 27, 2013 at 7:02pm

प्रिय रामशिरोमणि जी .. गज़ल की सराहना के लिए आपका  बहुत -२ आभार ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 4:02pm

आपसे ग़ज़ल सुनकर ही चौंक गया. तिसपर ग़ज़ल की ये रवानी, उसके ये तेवर ! महिमा श्री, आपके कई शेर बस कालीमिर्च की बुकनी जैसे हुए हैं, जिसकी तनिक रुक कर मगर देर तक तासीर बनी रहती हैं. यह ग़ज़ल तो बस क़ामयाब हो गयी !
बधाई.. बधाई.. बहुत खूब !

Comment by S. C. Brahmachari on December 26, 2013 at 11:06pm
मजहब के भी नाम पे देखो
कितने अत्याचार हुए हैं ............ उत्तम अभिव्यक्ति , उत्कृष्ट गजल ! नव वर्ष मे आपके महिमा की श्री वृद्धि होती रहे !
Comment by ram shiromani pathak on December 26, 2013 at 10:10pm

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल आदरणीया महिमा जी। …  हार्दिक बधाई आपको 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service