पिता
गर बेटियाँ है तुम्हारा स्वाभिमान
फिर क्यों
समाज के विद्रूपताओं से भयभीत होकर
रोकते हो उसकी हर उड़ान
बनाने क्यों नहीं देते उसकी
स्वयं की साहसी पहचान
असुरक्षा के डर से
देना चाहते हो उसको
किसी का साथ
खर्च कर लाखोँ लाते हो
छान बिन कर एक जोड़ी अदद हाथ
जो बनेगा तुम्हारी बेटी का आजीवन रक्षक
पर क्या होता है सही ये फैसला
हर बार
वक्त के साथ देख बेटियों की दुर्दशा
क्या नहीं होते स्वयं परेशान
पिता
बस एक विनती है हमारी
चिंता और व्यग्रता से बाहर निकल
दो निर्णय का अधिकार
भरो उनमे साहस
दो उनकी उड़ान को दिशा
राह में मत रोको , मत टोको
बनो मार्गदर्शक
जब तक नहीं बनेगी साहसी
तब तक कभी भी ,
कंही भी नहीं रहेगी सुरक्षित
समाज में बेटियाँ
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
पिता
बस एक विनती है हमारी
चिंता और व्यग्रता से बाहर निकल
दो निर्णय का अधिकार
भरो उनमे साहस
दो उनकी उड़ान को दिशा
महिमा जी आज के इस युग में बड़े धोखे सच में हो जाते है वैसे माँ पिता तो हर सम्भव अपनी लाड़ली की ख़ुशी चाहता है अच्छी रचना और विनय
आभार
भ्रमर ५
//
पिता
बस एक विनती है हमारी
चिंता और व्यग्रता से बाहर निकल
दो निर्णय का अधिकार
भरो उनमे साहस
दो उनकी उड़ान को दिशा//
हर बेटी अपने पिता से यह कह सके, यह आशा है ..... और हर पिता अपनी बेटी की कराह को सुन सके ।
कितनी बेटिओं के मन की बात कह दी आपने। बधाई, आदरणीया महिमा जी।
ऐसी बेटियाँ !! .. हर पिता को नाज़ होगा..
शुभ-शुभ
प्रिय महिमा जी,
बहुत समय बाद आपकी कोइ प्रस्तुति देखी...
बेटियों के मन की आवाज़ को बहुत सशक्त स्वर मिला है आपकी इस कविता में....
वैसे तो आज के समय में उचित वर तलाशने के मापदंडों में काफी फ्लेक्सीबिलिटी आयी है...फिर भी बिटिया को सुरक्षित हाथों में सौंपना तो सबसे बड़ा और पहला ही मापदंड होता है... लेकिन क्या बिटिया उन हाथों में उतनी सुरक्षित होती है... क्या नहीं रौंदे जाते बेटियों के छोटे छोटे सपने...
सही कहा आपने
...
दो निर्णय का अधिकार
भरो उनमे साहस
दो उनकी उड़ान को दिशा
.....
जब तक नहीं बनेगी साहसी
तब तक कभी भी ,
कंही भी नहीं रहेगी सुरक्षित
समाज में बेटियाँ
............................अपने ही अदृश्य डरों के खोल में घुटती सी ज़िंदगी जीती ही बिटिया...ज़रुरत है उसके मन में निडरता को स्थायी करने की ..तभी वो हर जगह सुरक्षित रह सकेगी. अपनी ज़िंदगी जी सकेगी ..अन्यथा वो तो सब कुछ आरोपित ही जीती है.
इस प्रस्तुति के लिए बधाई
लेकिन, कुछ टंकण त्रुटियाँ और व्याकरणिक त्रुटियाँ रह गयी हैं....उन्हें अवश्य ही सुधार लीजिये.आपकी रचनाओं से अब सुगढ़ता की अपेक्षा भी रहती है.
सस्नेह
एक बेट की सबला बनने की कामना पिता से करना उचित है, समय की भी यही मांग है, सार्थक प्रस्तुति के लिये बधाई
महिमा जी
यह समस्या मध्यम वर्ग की है i उच्च वर्ग तो वर्जनाओ को लात मार चूका है i अभिभावक की चिंता आजादी समेटने की नहीं होती i उसकी चिंता होती है युवा जोश और उमंग के साथ सामाजिक अनुभवहीनता i मध्यम वर्ग में इतना दम ही कहा है कि वह रिस्क ले i समाज तो फिर उसका ही जीना दूभर कर देता है i
शायद यह आपकी पहली कविता मेरे दृष्टि पथ पर आयी है i कविता में प्रभाव अवश्य है, रिद्म है --आपका भविष्य उज्जवल हो i
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online