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सुनो
क्या कहती हैं
माताएं , बहने , सखी सहेलियाँ
वक्त बदल चुका है
सुनना , समझना और विमर्श कंरना
सीख लो
स्वामित्व के अहंकार से
बाहर निकलो
सहचर बनो
सहयात्री बनो
नहीं तो ?
हाशिये पे अब 
तुम होगे
हमारे पाँव जमीं पर हैं
और  इरादे मजबूत
सोच लो ?

मौलिक व् अप्रकाशित

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Comment by Madan Mohan saxena on December 11, 2013 at 5:27pm
बहुत सार्थक भाव.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 26, 2013 at 11:39am

हाशिये पे अब  
तुम होगे
हमारे पाँव जमीं पर हैं
और  इरादे मजबूत
सोच लो ?.................वाह ! वाह! 

ये ज़ज्बा हो तो अपने अस्तित्व को तलाशती नारी हर जंग जीत ले ..:))

हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by vijay nikore on September 23, 2013 at 6:22pm

इस सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by अरुन 'अनन्त' on September 23, 2013 at 5:48pm

बिलकुल ठीक आदरणीया महिमा श्री जी इसी सोच की जरुरत है नारियों को सुन्दर संदेशात्मक प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकारें.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 23, 2013 at 4:10pm

चेतावनी में मजबूत इरादों के साथ जोश दिखाई दे रहा है | यह भी सही है कि अन्याय सहने की भी सीमा होती है |

इसमें आप सफल रही है | बधाई 

Comment by राजेश 'मृदु' on September 23, 2013 at 12:50pm

आदरेया, आप तो डरा रही हैं । कभी-कभी कुछ प्रार्थनाएं यदि बहुत तेजी से पढ़ी जाएं तो लगता है कि भक्‍त भगवान की अर्चना नहीं बल्कि उन्‍हें धमका रहा हो । हाशिए पर कोई ना रहे यही कामना है, सादर

Comment by Meena Pathak on September 22, 2013 at 8:03am

बहुत सुन्दर .. बधाई आप को 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 21, 2013 at 11:32pm

बहुत सुंदर व्  सार्थक रचना, बहुत बहुत बधाई आदरणीया महिमा जी

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on September 21, 2013 at 7:59pm

स्वामित्व के अहंकार से
बाहर निकलो
सहचर बनो
सहयात्री बनो
नहीं तो ?
हाशिये पे अब  
तुम होगे

सुन्दर रचना ..अच्छी चेतावनी ....बदलाव जरुरी है अन्याय कब तक सहा जाए
महिमा जी जय श्री राधे
भ्रमर ५

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 21, 2013 at 4:52pm

इस चेतावनी का जवाब नहीं..वाकई शानदार..सादर बधाई के साथ 

कृपया ध्यान दे...

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