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प्रिय महिमा जी
आपकी बेहतरीन रचनाओं में से एक रचना है ये...
इस साफगोई , बुलंद आत्मसमान से भरे सत्य कथ्य के लिए और सुन्दर प्रवाहमय प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं
हृदयस्पर्शी रचना.... बहुत खूब आदरणीय महिमा जी
आ. महिमा श्री आप सत्यम शिवम सुन्दरम ही नहीं बल्कि संदेशपरक भी ..दिशा सूचक भी ...सचेत करता भी लिखती हैं .. सिर्फ भावो में बहना कविता नहीं यह मैसेज आपकी रचनाओ में देखा है . बहुत संभावनाएं हैं आपमें उनका सकारात्मक अन्वेषण करें ..सदा सहयोग .सदा स्नेह सदा आशीर्वाद !!
आदरणीय राजेश जी!
वैसे तो महिमा जी ने विस्तार दे ही दिया है, आत्मसात करना आसान कर दिया, और कविता 3-4 बार मनन की जाए तो स्वयं ही अर्थ प्रकट कर देती है| देवता के वाग्विलास अर्थात वे विवाह के पूर्व के अनुबंध जो विवाह होते होते उसी अग्नि मे स्वाहा हो जाते हैं| और दुल्हिन देहरी बंद...
आदरणीया मैं अतुकांत लिखता भी हूँ
कभी समय मिले तो मेरी ब्लॉग लिस्ट पर नज़रे इनायत कीजियेगा ... :))))))))))
//देहरी सिर्फ मेरे लिए ......... कह दिया गया सच बाखूबी!!//
प्रिय वेदिका जी देर से आई तो सही ... और देर से ही सही ................................ देहरी सिर्फ मेरे लिए कह दिया गया :))
सस्नेह
आदरणीय वीनस जी .. क्या बात है :)) आप अतुकांत भी पढ़ते है जनाब .. आज पता चला ::))
बरहाल रचना पर आपका अनुमोदन पाकर प्रसन्नता हुयी .. आभारी हूँ ./
आदरणीया मीना पाठक जी नमस्कार .. स्वागत है .. आपने पढ़ा , पसंद किया आभारी हूँ ..
मुझे आश्चर्य है की नारियों का इस रचना पर अनुमोदन बहुत कम है ... अगर किसी आधुनिक नारी को सभी अधिकार सहजता से मिल गए हैं ..इसका ये मतलब नहीं की पुरे समाज में नारी की दशा में सुधार आ गया है ... अतः उनका क्या ये फर्ज नहीं बनता की वे उनकी दशा का संज्ञान ले ...
खैर मेरे मन में ये बात आई तो आपसे साझा कर ली ..
आपने समय दिया सादर धन्यवाद
आदरणीय अभिनव जी .. आप जैसे संवेदनशील रचनाकर्मी से रचना पर अनुमोदन पाकर अच्छा लगा .. सही कहा आपने बहेलिये हर जगह मिलते है स्त्री को जन्म के साथ ही इनसे बचने के लिए सतर्क रहना पड़ता है ..जनसख्याँ बढ़ने के साथ घटनाए भी बढती जा रही हैं ... बहुत सारी बातें है जो कभी खत्म ना हो ..इसलिए यही विराम देती हूँ ..
स्नेह बनाये रखे .. और इसी तरह प्रोत्साहित करते रहे यही ईश्वर से कामना है .. सादर
देहरी सिर्फ मेरे लिए ......... कह दिया गया सच बाखूबी!!
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