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“माँ! तुम कह रही थी न,  शादी कर ले ! सोचता हूँ, कर ही लूँ।“

“कोई पसंद है क्या ? बता दे ?”

“हाँ पसंद तो है । मेरे साथ काम करती है। तुम्हें और पिता जी को ऐतराज तो नहीं होगा ?“

“हमें क्यों ऐतराज होगा भला ! तेरी खुशी में ही हमारी खुशी है। पर हाँ! लड़की मांगलिक नही होनी चाहिए!, अपने से छोटी जाति की भी नहीं , और स्वागत में कोई कमी भी न हो !“

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 4, 2015 at 6:30am

आदरणीया ..इस सार्थक लघु कथा के लिए सादर बधाई सादर 

Comment by seema agrawal on May 3, 2015 at 10:33am

बस  का  अंदाज़  बदला  है,  ख्वाहिशों  और  प्राथमिकताओं  की फेहरिस्त नहीं ..........मज़बूती से  अपनी बात  रखती  कथा 

Comment by neha agarwal on May 2, 2015 at 2:52am
वाह
Comment by Archana Tripathi on May 2, 2015 at 1:57am
हमे कोई आपत्ति नहीं बस स्वागत उत्तम हो ।अब तो दहेज मांगने के रिवाज ने अपना स्टाइल बदल लिया है।
Comment by MAHIMA SHREE on May 1, 2015 at 6:38pm

आ. मिथिलेश वामनकर जी आपकी .. हृदय से निकली प्रशंसा ने उत्साह बढ़ा दिया...आपकी सदायश्यता के लिए हृदय तल से आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 1, 2015 at 6:32pm
सफल सफल सफल।
चुस्त लघुकथा दुरुस्त कथानक
एक भी शब्द भर्ती नहीं
एक भी शब्द कम नहीं
शर्तें ऐसा कटाक्ष पैदा कर रही है की गहरे तक पाठक प्रभावित हो गया।
बधाई
Comment by MAHIMA SHREE on May 1, 2015 at 5:58pm

प्रिय विवेक , तुम्हें कथा अच्छी लगी, जानकर हर्ष हुआ, आभार

Comment by MAHIMA SHREE on May 1, 2015 at 5:57pm

आ. गिरिराज जी, सराहना के लिए आभार, सादर

Comment by MAHIMA SHREE on May 1, 2015 at 5:57pm

आ. सौरभ सर , आपका अनुमोदन  मिला,  लिखना सार्थक रहा। आपका हृदय से आभार , सादर

Comment by MAHIMA SHREE on May 1, 2015 at 5:54pm

आ. गोपाल नारायण सर , आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार, सादर

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"आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। "
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