1.बरसों के बाद खुद को यूँ पहचान तो गया
सीने में दफ्न इश्क जुनूं जान तो गया
2.बीती तमाम उम्र तेरी आरज़ू में बस
चाहत भरा सफ़र हो ये अरमान तो गया
3.हमको कहाँ खबर थी कि दिल हार जाएगें
छो़ड़ो चलो कि दिल तेरे कुर्बान तो गया
4.मांगा खुदा से जिसको था सजदों में बारहा
मुझको वो मेरे नाम से पहचान तो गया
5. हमसे न हो सके थे जमाने के चोंचले
सब खुश हुए कि दौड़ से नादान तो गया
यह भी कि------------
6. बेशक ज़मीर बेच के कुर्सी बचाई है
हांथों से उसके आज लो ईमान तो गया
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
ग़जल पर आपकी उपस्तिथि हर्ष कारक है आ.जवाहर सर... सराहने के लिए बहुत बहुत आभार
सराहने के लिए बहुत-2 आभार आ. जितेन्द्र जी
आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी ..ही एक्स्ट्रा आ गया था मैंनें हटा दिया है..ध्यानाकर्षण के लिए धन्यवाद
खूबसूरत गजल कहने के सिवा ज्यादा कुछ कह नहीं सकता ..हाँ अंतिम पक्तियां
बेशक ज़मीर बेच के कुर्सी बचाई है
हांथों से उसके आज लो ईमान तो गया ...ज्यादा समझ आयी है ...दरअसल मैं गजल की बारीकियों से बिलकुल अंजान हूँ ...सोचता हूँ लिखने का प्रयास करूं और इसी मंच से लोगों से सीखूं...सादर महिमा बहन!
हमसे न हो सके थे जमाने के चोंचले
सब खुश हुए कि दौड़ से नादान तो गया.....बहुत खूब. सबसे पसंदीदा अशआर
बेशक ज़मीर बेच के कुर्सी बचाई है
हांथों से उसके आज लो ईमान तो गया.......वाह! आजकल ईमान और जमीर बस नाम के ही हैं.
इस बेहतरीन गजल पर आपको बधाई ,आदरणीया महिमा जी.
आदरणीया महिमा जी बेहतरीन तरही ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं
बीती तमाम उम्र तेरी ही आरज़ू में बस......... बह्र में ही पर पुनः विचार कीजियेगा.
सादर
ग़ज़ल पसंद करने के लिए..आपका बहुत बहुत आभार आ. वंदना जी..
//चौथे शेर के मिसरा ऊला में बारहा शब्द दोष उत्पन्न कर रहा है //
ध्यानाकर्षण के लिए आभारी हूँ देखती हूँ... सादर
सराहने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया आ. गोपाल नारायण जी,सादर
आपका हार्दिक आभार आ. विजय शंकर जी..सादर
ग़ज़ल पर समय देने और सराहने के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया आ. सुशील सरना जी,सादर
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