“हैलो! क्या चल रहा है ?”
“सर! अभी प्रमुख नेताओं का भाषण बाकी है, लगता है लम्बा चलेगा । भीड़ भी काफी है।“
"ओके!"
“हैलो! , सर ! मंच के ठीक सामने कुछ दूरी पर एक पेड़ है, उस पर एक आदमी फांसी लगाने की कोशिश कर रहा है।“
“अरे! “सोच क्या रहे हो ? , कैमरा घुमाओ उसकी तरफ !, फोकस करो! , हिलना भी मत जबतक................!”
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
दर्द और आज की वास्तविकता को जीवंत करती सुन्दर लघु कथा महिमा जी ....
जी कैमरे में तड़पन कैद हो जाए टी आर पी मिले धंधा चले बस ......जान जाए तो जाए ये तो खेल खिलौना है ..
भ्रमर ५
लघु कथा अच्छी लगी, बधाई।
बहुत खूब, आदरणीया महिमा जी. कल परसों की एक सच्ची घटना को बड़ी खूबी के साथ आपने साझा किया है. हार्दिक बधाई
सामयिक घटना को केन्द्रित कर लिखी गई लघु कथा अपनी छाप छोड़ने में कामयाब हुई दिल से बधाई प्रिय महिमा श्री.
पसंद करने केलिए आपका हृदय से आभार आ. धर्मेन्द्र जी
पसंद करने केलिए आपका हृदय से आभार आ. माला झा जी
पसंद करने केलिए आपका हृदय से आभार आ. नेहा जी
पसंद करने केलिए आपका हृदय से आभार आ. अर्चना जी
कथा को आपके मर्म तक पहुँची, लिखना सफल रहा .आ. सुनील जी, आपका हार्दिक आभार. सादर
जी आ. गोपाल नारायण जी उसी घटना को आधार बनाया है आपका हार्दिक आभार. सादर
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