For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चेहरे के पीछे
चेहरे है
उन पे कसे नकाब
बड़े तगड़े है..
मीठे बोलो के भीतर
तीखेपन का खंजर है..
घावों पे मरहम तो है
पर दाग बने गहरे है
लोग बने मदारी है.. और
समझे हमे जमूरा
मतलब की यारी है और
जमकर सीनाजोरी है
संभल संभल के हँसना है और
नाप तोल के कहना
मन के दुखड़े खोले तो
कहते है रोना धोना
खुल के जीने का
दम भर लो कितना भी
पर बच बच के है रहना
दुनिया गर नाटक है तो
हम कब तक रहेगे एक्टर
कभी तो आने दो हमको
जो है हम
हम बन कर ....

Views: 560

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by MAHIMA SHREE on March 28, 2012 at 4:03pm
आदरणीया सीमा जी
सही कहा आपने " आज के दौर में हम बहुत कुछ हैं बस "हम" ही नहीं हैं .....एक अंतराल के बाद इस "हम" की तलाश भी मुश्किल हो जाती है"
क्योकि हम दुनियावी दिखावे में स्वय को कब खो चुके होते है पता नहीं चलता....और जिंदगी बीत चुकी होती है... आपकी बहुमूल्य प्रतिकिर्या के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद् .. साभार
Comment by MAHIMA SHREE on March 26, 2012 at 10:46am
नीरज सर हार्दिक आभार....
Comment by MAHIMA SHREE on March 15, 2012 at 5:40pm
नमस्कार चातक जी
आपका बहुत -२ धन्यवाद् ....आपको पसंद आई सराहा ...आभारी हूँ
Comment by Chaatak on March 14, 2012 at 10:52pm

महिमा जी, बहुत ही खूबसूरती से जीवन का फलसफा शब्दों मे पिरोया है आपने| हार्दिक बधाई!

Comment by MAHIMA SHREE on March 13, 2012 at 3:21pm
आदरणीया कुमारी जी
आपका हार्दिक धन्यवाद्... स्नेह बनाये रखे..

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 13, 2012 at 2:53pm

bahut sundar bhaav hain rachna me ...bahut khoob

Comment by MAHIMA SHREE on March 13, 2012 at 2:44pm
वाहिद साहब नमस्कार
आपका बहुत-२ धन्यवाद् ...मुझे आपलोगों की बातो का ध्यान है .....पर छंद में लिखने के नियम आप सबको ही बताना होगा....:)
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 13, 2012 at 2:13pm

सदैव की भांति एक सुन्दर प्रस्तुति महिमा जी| समाज का व्यक्ति के प्रति नज़रिया बख़ूबी उभर कर सामने आया है| राकेश जी की बात पर भी थोड़ा ध्यान दीजियेगा| :-)

Comment by MAHIMA SHREE on March 13, 2012 at 1:04pm
आदरणीय योगराज सर...
आपकी आभारी हूँ...हर बार की तरह आपने मेरी रचना को सराहा है...उसे समझा ..स्नेह बनाये रखे..धन्यवाद्.

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 13, 2012 at 11:58am

अंतर्मन की की छटपटाहट को शब्दों में ढाल कर बहुत सुन्दर काव्य अभिव्यक्ति प्रस्तुत की है महिमा जी, बधाई स्वीकारें.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
19 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service