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बतकही कितनी भी
कर लूँ
रहता है खाली खाली
अंतस का कोना
ढोल बजा लूँ कितनी भी
रहता है सुना सुना
अंतस का कोना
शब्दों का मायाजाल है
जिंदगी का ख्याल है
कोशिश कितनी भी कर लूँ
रहता उदास है
अंतस का कोना
इश्वर के दरबार में
सब के लिए अरदास है
चलो अक दीप जला लूँ
जुगनुओ को दोस्त बना लूँ
अपनेपन के शोर से
गुंजित कर लूँ
अंतस का कोना.....

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Comment by MAHIMA SHREE on March 28, 2012 at 3:55pm
आदरणीया सीमा जी
नमस्कार, आपका हार्दिक धन्यवाद् .. आपकी सराहना से मन पुलकित
हो गया स्नेह बनाये रखे.. आभार.... .
Comment by MAHIMA SHREE on March 12, 2012 at 4:44pm
राज जी नमस्कार,
धन्यवाद आपका...
Comment by राज लाली बटाला on March 8, 2012 at 9:43pm

अच्छी रचना महिमा जी

Comment by minu jha on March 4, 2012 at 2:51pm

बहुत अच्छी रचना महिमा जी

Comment by MAHIMA SHREE on March 3, 2012 at 5:20pm
आदरणीय सर,
प्रणाम, सब आपके आशीर्वाद का प्रताप है.... ....आपकी सराहना...यूँही..मिलती रहे..तो...सब अच्छा ही करेगे......स्नेह बनाए रखे., अभारी हूँ सर
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 3, 2012 at 1:29pm

सुन्दर भावों से परिपूर्ण रचना महिमा जी| आदरणीय योगराज जी के विचारों का मैं भी समर्थन करता हूँ| साभार,

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 3, 2012 at 11:50am

itna achha likhengi aap 

kar dogi kya sabki chutti

himmat nahi padti manch par

aesi racna dekha bap re bap

badhai dun kya, 

lo diya ashirvad.

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 3, 2012 at 11:39am

सुंदर  रचना बधाई स्वीकार करें 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on March 3, 2012 at 10:59am

महिमा जी, कोई शक नहीं कि रचना का भाव पक्ष बहुत सदृढ़ है और शिल्प भी उत्तम है. मैंने एक जगह पहले भी अर्ज़ किया था कि कम शब्दों में आप बहुत अच्छी बात कहने की कला से भी वाकिफ हैं. क्या ही अच्छा हो अगर आप अपनी अभिव्यक्ति छंदों के माध्यम से करें. विशवास करें आपकी लेखनी में कई गुना निखार आ जायेगा, आप शुरुआत हाइकु से कर सकती हैं. बहरहाल इस  रचना के लिए मेरी दिली बधाई स्वीकार करें.

 

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