सुंदर -असुंदर
रूप-रंग
उच्च-नीच
उतार-चढ़ाव
गुड़िया-गहने
बादल-बिजली
फूल-काँटे
जीत-हार
अपना-पराया
मान-अपमान
सारे भेद
मिटने लगते है
सपने छूटने
लगते है
जब मृत्यु शय्या पर
कोई ईश्वर से प्रार्थना
कर रहा होता है
मुक्त हो जाने का
Comment
पहली दफा आपको पढने का अवसर प्राप्त हुआ महिमा जी, कहना न होगा कि आपको पड़ना बड़ा सुखदायक रहा. कम शब्दों में आला पाए की बात कहने का माद्दा आपकी कविता में साफ़ साफ़ परिलक्षित हो रहा है. इस सुन्दर रचना के लिए मेरा हार्दिक साधुवाद स्वीकार करें.
वाह वाह वाह, यह है कविता , एक अतुकांत कविता, सरल प्रवाह के साथ कम शब्दों में यह कविता जो कह गई , वो बेजोड़ है, कवियित्री बधाई की पात्र है,
Manapmanayo tulyo! satya vachan.
हर प्रकार के द्वंद्व से निर्लिप्तता ही मुक्ति का परिचायक है. आपकी रचना इसी वैचारिकता को धारती चलती है. कोई-कोई धीरजशील ही बाह्य-जगत की ओर उन्मुख दृष्टि को अंतर्मन की ओर मोड़ कर अंतः-संसार की अनुभूति कर पाता है. आपकी रचना की अंतर्धारा इसी तथ्य को संतुष्ट करती दीखती है.
आपकी कोई पहली रचना देख/ पढ़ रहा हूँ, महिमाश्री जी. हम आशान्वित हैं. हार्दिक शुभकामनाएँ
आशुतोष जी.....धन्यवाद् ,,आपको मेरी कविता पसंद आई...आभार
अच्छी रचना पर बधाई स्वीकार करें
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