मन में मेरे जो आएगा लिख कर उसको रख दूंगा
चाह नहीं कुछ नाम कमाऊँ दिया ह्रदय में रख दूंगा !
घर में मेरे जो आएगा मान दिए खुश कर दूंगा
जीवन मेरे जो छाएगा प्यार किये जीवन दूंगा
उपवन मेरा जो सींचेगा खुशहाली छाया दूंगा
पथ में राही साथ चले मुस्कान भरे स्वागत दूंगा
मै एक तपस्वी कांटे बोकर प्राण भी लो ,
कभी नहीं कह पाऊँगा ..
मन में मेरे जो आएगा लिख कर उसको रख दूंगा ………..
सूरज के गर साथ चलेंगे गर्मी हम पाएंगे ही
अंगार अगर हम ह्रदय रखेंगे सब भुन जायेंगे ही
गिरिवर कानन बोझ सहेंगे मन भायेंगे शीतलता पाएंगे ही
माँ में ममता आंसू होंगे स्वर्ग धरा जीवन सफल बनायेंगे ही
मै एक दानी दान किये छाया पानी भी ना चाहूँगा -
कभी नहीं कह पाऊँगा ..मन में मेरे जो आएगा लिख के ....
रहा ताकते शून्य धरा से जल जीव यहीं पर हिले कहीं -कुछ न कुछ आता ही है
सत्कर्म, धर्म, स्वीकार-भूल से मोक्ष मिले धन -मन पावन होता ही है
मधु मीठी कुछ लोग कहें घाव रखे पर दुःख होता -मन उनका रोता ही है
दीपक पूजे राह दिखाए आग लगे श्मशान कहीं -घर मातम छाता ही है
पेड़ लगा संघर्ष किये भी -फल चाहूं ना -मै योगी -कभी नहीं कह पाऊँगा
मन में मेरे जो आएगा लिख के…………..
एक पेड़ कितनी शाखाएं लाल सबुज पातों में लिपटे झूमे ही सावन होता
चाँद जभी तारों संग खेले बुझे खिले बदली ढँक खोले कैसा मन-भवन होता
ऊँच -नीच आडम्बर रत लाल कमाए दूर पड़े हम -मन मिलता ना रहता रोता
कर्म शर्म श्रम प्यार न देखे श्रुत भूले वैभव होता मन उनका खता है धोखा
तात -मात अपनापन भूले -पाथर पूजे स्वर्ग रहूँगा -कभी नहीं कह पाऊंगा
मन में मेरे जो आएगा ......
क्लिष्ट -कुटिल ना मुझको भायें मन को -आरोपण क्यों ?? जीवन यों ही धांधां है
सरल -साधु नैतिकता ना उपदेश न चाहें जीवन को जिसने बांधा है
भ्रम पालें मत मानें ना दर्पण देखें ऋण भूले -कर लेता जो ही गाथा है
सीकर- को जो सी-कर पाए मारे पाथर रस खोएं फट सकता तेरा माथा है
सर्व सकती है मेरे अन्दर ढाल मिला विष-पान किये भी अमर रहूँगा
कभी नहीं कह पाऊँगा मन में मेरे जो आएगा लिख के उसको रख दूंगा ...
चाह नहीं कुछ नाम कमाऊँ दिया ह्रदय में रख दूंगा !
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर
25.12.2012
Comment
भावनाओं और विचारों को यथावत शब्द रूप देने के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीय भ्रमर जी.
सादर
आदरणीय और सम्माननीय बागी जी बिलकुल सच कहा आपने कभी कभी वक्त बेवक्त कितने तो सपने की तरह विचार आ के भी चले जाते हैं समा बंधता नहीं और यादें कुछ शब्द रह जाते हैं वक्त की कमी व्यस्तता आप जैसे लोगों से दूर रहना बहुत सी कमी खलती है फिर भी यदा कदा कुछ सकारात्मक बन जाता है आप सब के प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत आभार जय श्री राधे
प्रिय अशोक भाई आप की बधाई सर आँखों पर अपना स्नेह और प्रोत्साहन यों ही बरसाते रहें जय श्री राधे
बार बार पढ़ रही हूँ बहुत कुछ है इस रचना में .जो आपके जीवन भर के अनुभव की निचोड़ और आपके भावमय मन की तस्वीर भी दिखा रही है ..
आदरणीया महिमा जी जय श्री राधे आप की बातें सुन मन गद गद हुआ हम कवि लेखक गण ऐसे ही एक दूजे की मनः स्थिति समझते रहें और जो बन पड़े समाज के लिए जहां भी रहें जिस हाल में रहें योगदान देते रहें तो आनंद और आये
आदरणीय विजय जी स्वागत है आप का जय श्री राधे ये प्रकृति चित्रण आप के मन को छू सका लिखना सार्थक रहा आभार
आदरणीय कुशवाहा जी आप का स्नेह और स्वीकारोक्ति मिली हम धन्य ही अपना स्नेह बनाये रखे
प्रिय अनंत जी प्रोत्साहन के लिए आभार व्यस्तताएं हमारे मन मस्तिष्क को झकझोर देती हैं आप सब से दूर रहना बड़ा बुरा लगता है पर मजबूरियों के आगे कदम ताल करते बढ़ जाने में ही उचित लगता है
आदरणीय भ्रमर जी, अक्सर हमारे दिमाग में विचार उमड़ते घुमड़ते रहतें हैं जिन्हें सिलसिलेवार बांधना होता है, उन्ही सब ख्यालों को बाँधने का बहुत ही खुबसूरत प्रयास है यह रचना, अच्छी अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें |
उसी पथ के हम भी है राही, साथ तुम्हारा मै दूंगा,
कांटे बोए जो पथ पर, स्वागत में अपने कर से फूल उसे मै दूंगा
आदरणीय लड़ी वाला जी मन खुश हो गया काश ऐसे ही बुलंद आवाज से अच्छे लोग अच्छाइयों का साथ दें बुराइयों को समूल उखाड़ फेंकने में आसानी होगी
सुन्दर रचना आदरणीय भ्रमर जी बधाई स्वीकारें.
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