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सेवा का थोड़ा व्रत रख लें

सेवा का थोड़ा व्रत रख लें 

सेवा का मीठा फल चख लें ।।

यह दुनिया खुद की मारी है ,

खुदगर्ज यहाँ हर   मानव है ,

अपने छोटे पेट की खातिर

कुकर्म करे यह नित नव  है ।

गैरों को थोडा अपना कह लें --सेवा का मीठा फल चख लें ।।

जो देख रहे वह दुनिया नही ,

यह तो बस केवल मरघट है ,

कहने वालेतो कहते ही रहेंगे 

यहाँ लोभ-मोह का जमघट है ।

इससे तो अब थोड़ा बच लें ----सेवा का मीठा फल चख लें ।।

गीता-गुरु को भुला कर साथी 

ना  कोई   सुख      पाया है ,

अपने अन्दर  झाँक कर देखे 

अब तक जो समय गँवाया है ।

काल के साये से  बच लें ------सेवा का मीठा फल चख लें ।।

                                        ------------------श्रीराम 

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Comment by श्रीराम on December 26, 2012 at 9:24pm

कुशवाहा जी आपने जो उत्साह बढ़ाया है इसके लिये बहुत ही धन्यबाद....

Comment by श्रीराम on December 26, 2012 at 9:20pm

बहुत ही धन्यबाद  महिमाजी ...

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2012 at 5:43pm

अपने अन्दर झाँक कर देखे

अब तक जो समय गँवाया है ।

काल के साये से बच लें ------सेवा का मीठा फल चख लें ।।बहुत ही सही फरमाया है श्री राम जी आपने ... अपने आप को अगर झांक कर लोग देखेने लगे तो कितनी समस्याएं यूँही सुलझ जाए .. अध्यात्मक प्रस्तुति के लिए बधाई आपको

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 26, 2012 at 4:29pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति 

सादर महोदय जी. 

बधाई. 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 26, 2012 at 1:58pm

ओ.बी.ओ. से जुड़ने हेतु अनेक-२ धन्यवाद, श्रीराम जी बढ़िया रचना हेतु बधाई स्वीकारें सादर

Comment by Shyam Narain Verma on December 25, 2012 at 1:13pm

कृपया ध्यान दे...

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