दामिनी गयी दुनिया से देख,
क्या विधाता का यह लेख है |
बेटी पूछती अपना कसूर,
क्यां इंसानियत कुछ शेष है।
बेटे में ऐसा क्या है अलग,
जो देता दर्जा उसे विशेष है।
क्यों न सख्त सजा अपराध की,
गर तराजू करता इन्साफ है ।
मूक है शासक चादर ताने,
हैवानियत छू रही आकाश है ।
मानवता पर लग रहा कलंक,
सभ्य समाज का पर्दाफाश है ।
कानून बना है, और बन जाएगा,
उससे क्या संस्कार आ जायेगा।
समाज और सरकार अब जानले,
नैतिक शिक्षा जरूरी यह मानले।
जिसे देवी मान पूजा जाता है,
भोग की वस्तु नहीं यह जानले।
बीज को ही जड़ से उखाड रहे,
किस विध पेड़ उगेगा क्या भान है।
बहुत हो चूका, दरिंदगी देख रहे,
सभ्य समाज भी लज्जा झेल रहे ।
अति हो चुकी, अब क्रांति लानी है
दरिंदों को फांसी ही दिलानी है।
साहित्यकार हो या मीडियाकर्मी,
संतजन हो, या समाजसेवी,
सबको अपना धर्म निभाना है ।
अत्याचारी हो या व्यभिचारी,
उनको न अब कोई मान मिले ।
रघुकुल सा अब वचन निभावे,
दहेज़खोर को न कोई वधु मिले।
तुरंत सजा मिले इन सबको,
ऐसा सख्त से सख्त क़ानून बने।
श्रद्धा सुमन हम अर्पित करते,
दामिनी की आत्मा को शांति दे,
पैशाचिक प्रवृत्ति के लोगो को,
अब सदबुद्धि का वरदान दे ।
-लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला
Comment
श्रद्धा सुमन हम अर्पित करते,
दामिनी की आत्मा को शांति दे,
पैशाचिक प्रवृत्ति के लोगो को,
अब सदबुद्धि का वरदान दे ।...आपके स्वर को ही प्रतिध्वनित करूंगी
मन के आक्रोश और विकलता को प्रस्तुत करती रचना के लिए हार्दिक बधाई लक्ष्मण जी
रचना की सार्थकता सिद्ध करने के लिए हार्दिक आभार डॉ अजय खरे जी
adarniy aapki kavita ne mano mastik ko jhakjhor ke rakh diya bahut sunder
भाई श्री अशोक रक्ताले जी, सामाजिक सरोकारों से जुडी रचना आपको बेहद पसंद है, आपकी शुभ कामनाए अवश्य फलीभूत हो, यही इश्वर से दुआ है । अपका हार्दिक आभार
आदरणीय लड़ीवाला साहब सादर, नैतिक शिक्षा और नैतिकता पर बल देती सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.आने वाला वर्ष आपकी भावनाओं को हर एक तक पहुंचाये यही कामना, आने वाले नव वर्ष के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं.
हार्दिक आभार आपका श्री अरुण शर्मा अनंत जी, आपने मेरे विचारों में अपनी अपनी भी भावना बताई यह तो हर सवेदनशील ह्रदय की आत्मा बोलेगी -
आदरणीय सर यही कामना मेरे ह्रदय में भी है, सुना है लोगों से कि ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती परन्तु इतना कुछ हो रहा है, गरीबों पर दिन पे दिन गाज गिर रही है, महंगाई ताड़का की तरह अपना मुख खोल रही है. प्रभु आपकी वो लाठी कहाँ है जिसमे आवाज नहीं होती और कितनी देर करेंगे जबकि अंधेर तो कबकी हो चुकी है. दामिनी को भाव भीनी श्रधांजलि, आपका इस सामायिक प्रस्तुति पर हार्दिक धन्यवाद एवं बधाई.
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