For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दामिनी गयी दुनिया से देख,
क्या विधाता का यह लेख है |
बेटी पूछती अपना कसूर,
क्यां इंसानियत कुछ शेष है।
बेटे में ऐसा क्या है अलग,
जो देता दर्जा उसे विशेष है।
क्यों न सख्त सजा अपराध की,
गर तराजू करता इन्साफ है ।
मूक है शासक चादर ताने,
हैवानियत छू रही आकाश है ।
मानवता पर लग रहा कलंक,
सभ्य समाज का पर्दाफाश है ।
कानून बना है, और बन जाएगा,
उससे क्या संस्कार आ जायेगा।
समाज और सरकार अब जानले,
नैतिक शिक्षा जरूरी यह मानले।
जिसे देवी मान पूजा जाता है,
भोग की वस्तु नहीं यह जानले।
बीज को ही जड़ से उखाड रहे,
किस विध पेड़ उगेगा क्या भान है।
बहुत हो चूका, दरिंदगी देख रहे,
सभ्य समाज भी लज्जा झेल रहे ।
अति हो चुकी, अब क्रांति लानी है
दरिंदों को फांसी ही दिलानी है।
साहित्यकार हो या मीडियाकर्मी,
संतजन हो, या समाजसेवी,
सबको अपना धर्म निभाना है ।
अत्याचारी हो या व्यभिचारी,
उनको न अब कोई मान मिले ।
रघुकुल सा अब वचन निभावे,
दहेज़खोर को न कोई वधु मिले।
तुरंत सजा मिले इन सबको,
ऐसा सख्त से सख्त क़ानून बने।
श्रद्धा सुमन हम अर्पित करते,
दामिनी की आत्मा को शांति दे,
पैशाचिक प्रवृत्ति के लोगो को,
अब सदबुद्धि का वरदान दे ।

-लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला

Views: 523

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 31, 2012 at 7:53pm
आक्रोश और विकलता तो सभी में है जो पुरे देश में हर छोटे बड़े शहर में झलक रही है ।
इसे कागज़ पर उतारने के प्रयास की सराहना के लिए आपका हार्दिक आद आभार सीमा जी
Comment by seema agrawal on December 31, 2012 at 7:46pm

श्रद्धा सुमन हम अर्पित करते,
दामिनी की आत्मा को शांति दे,
पैशाचिक प्रवृत्ति के लोगो को, 
अब सदबुद्धि का वरदान दे ।...आपके स्वर को ही प्रतिध्वनित करूंगी 
मन के आक्रोश और विकलता को प्रस्तुत करती रचना के लिए हार्दिक बधाई लक्ष्मण जी 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 31, 2012 at 7:29pm

रचना की सार्थकता सिद्ध करने के लिए हार्दिक आभार डॉ अजय खरे जी 

Comment by Dr.Ajay Khare on December 31, 2012 at 4:19pm

adarniy aapki kavita ne mano mastik ko jhakjhor ke rakh diya bahut sunder

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 31, 2012 at 10:08am

भाई श्री अशोक रक्ताले जी, सामाजिक सरोकारों से जुडी रचना आपको बेहद पसंद है, आपकी शुभ कामनाए अवश्य फलीभूत हो, यही इश्वर से दुआ है । अपका हार्दिक आभार 

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 31, 2012 at 8:36am

आदरणीय लड़ीवाला साहब सादर, नैतिक शिक्षा और नैतिकता पर बल देती सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें.आने वाला वर्ष आपकी भावनाओं को हर एक तक पहुंचाये यही कामना, आने वाले नव वर्ष के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 30, 2012 at 12:22pm

हार्दिक आभार आपका श्री अरुण शर्मा अनंत जी, आपने मेरे विचारों में अपनी अपनी भी भावना बताई यह तो हर सवेदनशील ह्रदय की आत्मा बोलेगी -

उड़ते फिरे स्वछंद घिनौने, काटो पंख उनपरिंदों के,
सब मिल कर दे ऐसा,होवें होंसले पस्त उन दरिंदों के.
Comment by अरुन 'अनन्त' on December 30, 2012 at 12:12pm

आदरणीय सर यही कामना मेरे ह्रदय में भी है, सुना है लोगों से कि ऊपर वाले की लाठी में आवाज नहीं होती परन्तु इतना कुछ हो रहा है, गरीबों पर दिन पे दिन गाज गिर रही है, महंगाई ताड़का की तरह अपना मुख खोल रही है. प्रभु आपकी वो लाठी कहाँ है जिसमे आवाज नहीं होती और कितनी देर करेंगे जबकि अंधेर तो कबकी हो चुकी है. दामिनी को भाव भीनी श्रधांजलि, आपका इस सामायिक प्रस्तुति पर हार्दिक धन्यवाद एवं बधाई.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
12 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
17 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"आ. भाई सालिक जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"सतरंगी दोहेः विमर्श रत विद्वान हैं, खूंटों बँधे सियार । पाल रहे वो नक्सली, गाँव, शहर लाचार…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"आ. भाई रामबली जी, सादर अभिवादन। सुंदर सीख देती उत्तम कुंडलियाँ हुई हैं। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Chetan Prakash commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"रामबली गुप्ता जी,शुभ प्रभात। कुण्डलिया छंद का आपका प्रयास कथ्य और शिल्प दोनों की दृष्टि से सराहनीय…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"बेटी (दोहे)****बेटी को  बेटी  रखो,  करके  इतना पुष्टभीतर पौरुष देखकर, डर जाये…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service