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आदरणीय सौरभ भईया, समाज में घटित घटनायें लेखक को सृजित करने हेतु प्रेरित करते हैं, शुक्ल पक्ष को सभी देखते हैं किन्तु कृष्ण पक्ष सामाजिक दृष्टि से ओझल ही रहता है, जिसे इस लघु कथा के माध्यम से सामने लाने का एक प्रयास भर है, यह कृति आपको रूचि यह मेरे लेखन कर्म को सार्थकता प्रदान करता है , आपका आशीर्वाद सदैव मुझे सहयोग और उत्साहवर्धन करतें हैं, बहुत बहुत आभार आदरणीय |
आदरणीय विजय निकोरे साहब, कथा के भाव आप तक हुबहू पहुच सका और आपसे सराहना प्राप्त हुई, बहुत बहुत आभार |
जिस निकृष्ट मनोदशा को प्रस्तुत लघुकथा सामने लाती है वह इस समाज में दूर की कौड़ी नहीं है. इस पक्ष को स्वर देने के लिए कथाकार को हृदय से बधाई.
यह कृष्ण पक्ष वस्तुतः अपने ही आकाशीय विस्तार का अन्यतम हिस्सा है, नकारा नहीं जा सकता. लेकिन उसके निबह जाने की प्रणाली ढूँढ लेना सभ्य समाज की नैतिक ऊँचाई का ससंदर्भ बखान है. नैतिकता का अर्थ सदा से सापेक्ष हुआ करता है. इसी सापेक्ष को समझने की और समाज में निरंतर पगाने की आवश्यकता है. दहेज-उत्पीड़न के नाम पर शिकार हुए कई-कई वर-पक्ष के परिवारों की विवशता इन्हीं संदर्भों में समझी जा सकती है.
भाई गणेशजी, साधु-साधु !
आदरणीय गणेश जी,
लघु कथा के माध्यम आपने समाज का एक और दर्पण दिखाया है.. और यह कितना सच है! बधाई।
विजय निकोर
आदरणीया भावना तिवारी जी, दरअसल शुक्ल पक्ष को तो सभी देखते हैं मैंने इस लघुकथा के माध्यम से कृष्ण पक्ष को उजागर करने का प्रयास किया है, आपकी सराहना मेरे उत्साहवर्धन का कारक है । बहुत बहुत आभार ।
बहुत बहुत आभार भाई अरुण शर्मा अनंत जी ।
आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद जी, आपका आशीर्वाद प्राप्त हुआ, लेखन कर्म सार्थक हुआ, आभार आपका ।
धन्यवाद भाई धर्मेन्द्र सिंह जी ।
बहुत बहुत आभार आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी, आप लघुकथा की आत्मा को साक्षात किया ।
प्रिय शैलेन्द्र जी, लघुकथा को सराहने हेतु बहुत बहुत आभार ।
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