सांस उसकी थम गई
एक बेटी सो गई।
पर अब जागा हिंदूस्तां
हर आंख नम हो गई।।
मैं सजा दिलाना चाहती हूं
उन दरिंदों को मां।
ताकि अपवित्र ना हो
फिर कोई दामिनी मां।।
हौंसला बुलंद देखा
कुछ पलों के होश में।
देशवासी न्याय मांगे
हर कोई आक्रोश में।।
तेरा बलिदान हमेशा याद रहेगा
अब मेरा हिंदूस्तां नहीं सहेगा।
यू हीं घूमते रहे गर दरिंदे
तो आक्रोश यूं ही कायम रहेगा।।
चिंगारी जो जल चुकी है
अब नहीं बुझने देना।
बेटी की मौत औ
अपमान का बदला है लेना।।
सजा ऐसी दरिंदों को मिले
देश में संदेश जाए ।
फिर किसी में ऐसा
करने की हिम्मत ना आए।।
चिर निद्रा में सोई बिटिया
सुकून उसकी आत्मा को भी मिलेगा।।
बदल डालों कानून अब
वरना ये देश मेरा यू ही हिलेगा।।
Comment
मानसिकता में बदलाव की जरुरत है, किसी कानून के बस की यह बात नहीं।।पर आपकी सोच का भी आदर है, आपके रचना में लय है, उम्मीद की किरणे नजर आती है ...नमन
दिल की बात सीधे दिल तक पहुंची हैं बधाई हो आदरणीय
बहुत ही संवेदनशील रचना, बधाई इस अभिव्यक्ति पर आदरणीय चन्द्रमौलि जी |
मित्रवर दिल से लिखी गई इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई .
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