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सांस उसकी थम गई

एक बेटी सो गई।
पर अब जागा हिंदूस्तां
हर आंख नम हो गई।।
मैं सजा दिलाना चाहती हूं
उन दरिंदों को मां।
ताकि अपवित्र ना हो
फिर कोई दामिनी मां।।
हौंसला बुलंद देखा
कुछ पलों के होश में।
देशवासी न्याय मांगे
हर कोई आक्रोश में।।
तेरा बलिदान हमेशा याद रहेगा
अब मेरा हिंदूस्तां नहीं सहेगा।
यू हीं घूमते रहे गर दरिंदे
तो आक्रोश यूं ही कायम रहेगा।।
चिंगारी जो जल चुकी है
अब नहीं बुझने देना।
बेटी की मौत औ
अपमान का बदला है लेना।।
सजा ऐसी दरिंदों को मिले
देश में संदेश जाए ।
फिर किसी में ऐसा
करने की हिम्मत ना आए।।
चिर निद्रा में सोई बिटिया
सुकून उसकी आत्मा को भी मिलेगा।।
बदल डालों कानून अब
वरना ये देश मेरा यू ही हिलेगा।।

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Comment

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Comment by Anwesha Anjushree on January 13, 2013 at 10:32am

मानसिकता में बदलाव की जरुरत है, किसी कानून के बस की यह बात नहीं।।पर आपकी सोच का भी आदर है, आपके  रचना में लय  है, उम्मीद की किरणे  नजर आती है ...नमन 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 13, 2013 at 10:13am

दिल की बात सीधे दिल तक पहुंची हैं बधाई हो आदरणीय


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on January 12, 2013 at 8:34pm

बहुत ही संवेदनशील रचना, बधाई इस अभिव्यक्ति पर आदरणीय चन्द्रमौलि जी |

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 12, 2013 at 11:21am

मित्रवर दिल से लिखी गई इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई .

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