सर्द रातों का आतंक ,
सबका बुरा हाल हुआ !
रूह कपा देने वाली ठण्ड से ,
खड़ा एक एक बाल हुआ !!
क़यामत की धुंधली रातों में
डरे ,कांपते हुए जो सिमटे है !
उन गरीबों का क्या हाल होगा ,
जो फटे कम्बल में लिपटे है !!
सुख सुविधाओ से परिपूर्ण वो ,
क्या जाने सर्द रातों का स्याह सच !
कैसे ढकता बदन वह ,
एक अधखुला कवच !!
कहर बरसाती ठण्ड रातें ,
बर्फीली हवा झेलते फेफड़े ,
नेता जी कम्बल घोटाला करके ,
कलेजे पे रखते बर्फ के टुकड़े!!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
अरुन शर्मा "अनन्त" जी हार्दिक धन्यवाद् जी आपका
मित्रवर अच्छी रचना बन पड़ी है बधाई
हार्दिक धन्यवाद् बागी जी !!!
//सुख सुविधाओ से परिपूर्ण वो ,
क्या जाने सर्द रातों का स्याह सच !//
दुःख सुख, दिन रात, स्याह उजला, गरीब अमिर,,,,,,,,,,,यह सब तो संग संग सदैव चलेंगे । अच्छी रचना बधाई ।
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