शब्दों में एक ज्वाला भर लो ,
लड़ने को अब कमर कस लो !
दुर्दशा पर चटखारे ना ले कोई ,
इतना खुद को सशक्त कर लो !!
शायद डर से गुमराह हो ,
अपना रास्ता खुद ही चुन लो !
इस हाल के ज़िम्मेदार है जो ,
उनसे अब दो दो हाँथ कर लो !!
यदि सहना है उत्पीडन इनका ,
यूँ ही खुद को बदनाम कर लो!
पड़े रहो मुर्दों की तरह,
खुद को इनका गुलाम कर लो!!
लड़ नहीं सकते जब तुम ,
कायर सा फिर जीना क्यूँ !
तिल तिल कर मरने से अच्छा ,
खुद का ही काम तमाम कर लो !!
राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
लड़ नहीं सकते जब तुम ,
कायर सा फिर जीना क्यूँ !
तिल तिल कर मरने से अच्छा ,
खुद का ही काम तमाम कर लो .......सही कहा आपने
हार्दिक धन्यवाद् अरुन शर्मा "अनन्त" जी आपका
दीपक जी बेहद सशक्त रचना हार्दिक बधाई, अब इन सब की खास जरुरत आन पड़ी है.
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