मित्रों गोपियों के विरह को और उनके कृष्ण प्रेम को महसूस करने की कोशिश की है ....... आशा है आपको यह गीत पसंद आएगा
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प्रेम तत्व का सार कृष्ण है जीवन का आधार कृष्ण है |
ब्रह्म ज्ञान मत बूझो उद्धव , ब्रह्म ज्ञान का सार कृष्ण हैं ||
मुरली की धुन सामवेद है , ऋग् यजुर आभा मुखमंडल
वेद अथर्व रास लीला है ,शास्त्र ज्ञान कण कण बृजमंडल |
अब कौन रहा जो धर्म सिखावन चाह रहे हो उद्धव तुम
जा कर कह दो निर्मोही को यूँ छोड़ गए क्यूँ कर व्याकुल ||
हे उद्धव आँखों से बहती अश्रुधार से भीगा आँगन
विरह अग्नि में झुलसा तन बस कृष्ण दरस का चाहे चन्दन
उस पर तुम ये ब्रह्म सत्य का झूठा आश्वाशन यदि दोगे
सत्य सपथ अपने कान्हा की प्राण त्याग देंगी हम जोगन ||
देखो ये खग मृग जल थलचर इनकी व्याकुलता को जानो
कृष्ण दरस की लगी टकटकी इनकी आँखों में पहचानो
देखो गौशाला में कैसी गुमसुम है गौमाता उद्धव
तुम ठहरे निर्गुण निर्मोही पशुओं की पीड़ा क्या जानो ||
वृन्दावन का देखो कैसे कुम्हलाया मुरझाया उपवन
गोवर्धन का शिखर झुका है खोज रहा हो ज्यूँ आलंबन
यमुना की धाराएं देखो भूल गयी है कलरव अपना
श्याम बिना बेचारी श्यामा भूल गयी है अपना क्रंदन ||
उद्धव क्या मोहन ने कोई पाती नहीं लिखी है हमको ?
उस पाती को गले लगा कर संभव शांति मिले इस तन को
कुछ बोला होगा अधरों से तुम केवल वो शब्द सुना दो
मनमोहन को मन में रख कर सुन तो लेंगी प्रियतम को ||
उनको कहना भीगे नयनों से दासी ने किया दंडवत
चरणों में ही रखते चाहे छोड़ गए क्यूँ करके जडवत
प्राण नही खो सकते हैं हम प्राणों में भी तुम बसते हो
रमे हुए हो रोम रोम में सिरहन उठती जब लें करवट ||
उद्धव तेरा ज्ञान कृष्ण है ब्रह्म सत्य भी नाम कृष्ण है
हम विरहन चाहे अज्ञानी हम सबका अज्ञान कृष्ण है ||............मनोज
Comment
बहुत बढ़िया-
परिश्रम साफ़ झलकता है-
आभार आदरणीय-
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