For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आजादी के समय देश में हर तरफ दंगे फैले हुए थे। गांधी जी बहुत दुखी थे। उनके दुख के दो कारण थे - एक दंगे, दूसरा उनके तीनों बंदर खो गए थे। बहुत तलाश किया लेकिन वे तीन न जाने कहां गायब हो गए थे।

एक दिन सुबह अपनी प्रार्थना सभा के बाद गांधी जी शहर की गलियों में घूम रहे थे कि अचानक उनकी निगाह एक मैदान पर पड़ी, जहां बंदरों की सभा हो रही थी। उत्सुकतावश गांधीजी करीब गए। उन्होंने देखा कि उनके तीनों बंदर मंचासीन हैं। उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। प्रसन्न मन वे उन तीनों के पास पहुंचे।

गांधीजी, ’अरे तुम लोग कहां चले गए थे, मैंने तुम तीनों को कितना ढूंढा? यहां क्या कर रहे हो?’

बंदर बोले, ’गांधीजी, हम लोगों ने आपको और आपके सिद्धान्त दोनों को त्याग दिया है। यह हमारी पार्टी की पहली सभा है। देश आजाद हो गया। अब आपकी और आपके सिद्धान्तों की देश को क्या जरूरत?’

गांधी जी हतप्रभ से खड़े रह गए।

आज भी खड़े हैं ठगे से, मूक इस देश में हो रहा तमाशा देखते।

अपने शहर में ढूंढिएगा कहीं न कहीं मिल जाएंगे मूर्तिवत खड़े हुए।

                                                                                         - बृजेश नीरज

 

Views: 649

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on March 15, 2013 at 8:11pm

आदरणीय स्वर्ण जी आपका आभार!

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on March 15, 2013 at 7:52pm

सार्थक व्यंग्य

धन्यवाद बृजेश नीरज  जी

Comment by बृजेश नीरज on February 25, 2013 at 4:44pm

 Meena Pathak ji,

आपका बहुत बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on February 25, 2013 at 4:44pm

Shubhranshu Pandey ji,

आपका बहुत बहुत आभार!

Comment by Meena Pathak on February 25, 2013 at 4:33pm

"आज भी खड़े है ठगे से, मूक इस देश में हो रहा तमाशा देखते" ... सही कहा आप ने ,इस सुन्दर कहानी के लिए बधाई स्वीकारें

Comment by Shubhranshu Pandey on February 25, 2013 at 4:02pm

गांधी के बन्दरों की खोज सभी कर रहे हैं. बहुत सुन्दर कहानी..बधाई..

Comment by बृजेश नीरज on February 22, 2013 at 8:14pm

प्राची जी, आपका बहुत बहुत आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 22, 2013 at 7:01pm

गांधी जी के बन्दर 

अपने शहर में ढूंढिएगा कहीं न कहीं मिल जाएंगे मूर्तिवत खड़े हुए।...........

हाहाहा .... चारों तरफ ये ही तो हैं, २ अक्टूबर को गांधी जी की प्रतिमा पर हार चढाते पास से भी दीखते हैं हाहाहा 

इस अच्छी सामयिक व्यंग रचना पर बहुत बहुत बधाई आदरणीय ब्रजेश कुमार जी 

Comment by बृजेश नीरज on February 22, 2013 at 6:15pm

आदरणीया राजेश कुमारी जी, आपका बहुत बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on February 22, 2013 at 6:13pm

आदरणीया वन्दनाजी,

आपका बहुत आभार!

वास्तविकता यही है कि यह मेरे जीवन की दूसरी लघुकथा है।

सादर!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
2 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
22 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on नाथ सोनांचली's blog post कविता (गीत) : नाथ सोनांचली
"आ. भाई नाथ सोनांचली जी, सादर अभिवादन। अच्छा गीत हुआ है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।"ओबीओ…See More
Sunday
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"धन्यवाद सर, आप आते हैं तो उत्साह दोगुना हो जाता है।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सुझाव के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी, अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए धन्यवाद।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। आपकी उपस्थिति और स्नेह पा गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ । आपके अनुमोदन…"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. रिचा जी अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुइ है। हार्दिक बधाई।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"शुक्रिया ऋचा जी। बेशक़ अमित जी की सलाह उपयोगी होती है।"
Saturday
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"बहुत शुक्रिया अमित भाई। वाक़ई बहुत मेहनत और वक़्त लगाते हो आप हर ग़ज़ल पर। आप का प्रयास और निश्चय…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service