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'माँ'

माँ..
मैं परिणाम तुम्हारे त्यागों का
वरदान तेरे संघर्षों का
सम्मान तुम्हारे भावों का
निष्कर्ष तेरे कर्तव्यों का
कोरी है रसना की परिपाटी,
क्या शब्द बुनूं तेरी ममता में...
तेरे,
संघर्षों से अस्तित्व मिला
तेरे भावों से उर प्रेम खिला
कर्तव्यों से पथ-दर्श मिला
कुछ यूं हि मुझे आकार मिला,
क्या प्रतिफल दूं तेरी ममता में...
तूने,
सृजन किया है दृढ़ता से
पर पाला अति कोमलता से
मोह त्यागकर ममता से
खुद जल,सींचा शीतलता से
बंजर है मेरा हृदय क्षेत्र,
क्या भाव गढ़ूं तेरी ममता मे...
सम्भव है, पृथक रहूं मैं तन से
दायित्व बंधें हैं जो जीवन से
संस्कार पौध रोपी जो तूने
प्रसून बिखेरेगी जग-उपवन में
प्रीति-मेघ की बौछारों के
दो 'विन्दु' समर्पित तेरी ममता में...
-विन्दु
(अप्रकाशित)

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Comment by Vindu Babu on April 28, 2013 at 4:10pm
आदरणीय रामशिरोमणि जी क्षमा करे आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया तक देर में पहुंच सकी।
सादर आभार आपका।
Comment by Vindu Babu on April 28, 2013 at 4:08pm
हर एक रचना पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर मेरा बहुत संबल बढ़ा है आदरणीय।
आशीर्वाद बनाए रखें।
सादर
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on April 26, 2013 at 2:40pm

संस्कार पौध रोपी जो तूने
प्रसून बिखेरेगी जग-उपवन में
प्रीति-मेघ की बौछारों के
दो 'विन्दु' समर्पित तेरी ममता में.

बहुत खूब, बधाई,

आदरणीया वन्दना जी 

सादर 

Comment by ram shiromani pathak on February 25, 2013 at 9:36pm

माँ से ही तो हमारा आस्तित्व है .. बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए 

Comment by बृजेश नीरज on February 25, 2013 at 5:26pm

मेरे विचार से कविता की गति को बनाए रखने के लिए शब्दों का रूप बदलना उचित नहीं है। हालांकि बहुत लोग बहुत अधिक खिलवाड़ करने लगे हैं।

Comment by Vindu Babu on February 25, 2013 at 5:18pm
आदरेया प्राची जी सादर आभार आपका.
आदरणीय महोदय आपने सही कहा 'ही' ही होना चाहिए पर कविता की गति को ध्यान मे रखते हुए 'यूहिं' कर दिया था.
स्नेहात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक स्वागत् !
सादर
Comment by Vindu Babu on February 25, 2013 at 5:18pm
आदरेया प्राची जी सादर आभार आपका.
आदरणीय महोदय आपने सही कहा 'ही' ही होना चाहिए पर कविता की गति को ध्यान मे रखते हुए 'यूहिं' कर दिया था.
स्नेहात्मक प्रतिक्रिया का हार्दिक स्वागत् !
सादर
Comment by बृजेश नीरज on February 23, 2013 at 7:19pm

वन्दना जी

बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

कुछ यूं हि मुझे आकार मिला

इस पंक्ति में ‘हि’ के स्थान पर मुझे लगता है कि ‘ही’ होना चाहिए।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on February 23, 2013 at 3:42pm

माँ के प्रति श्रद्धा अर्पित करती इस अभिव्यक्ति के लिए बधाई प्रिय वंदना जी 

Comment by Vindu Babu on February 22, 2013 at 1:42pm
आदरणीय अजय महोदय और आदरणीया मीना बहन सादर आभार!

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