चला जा रहा हूँ इस निर्जन पथ पर
अनजानी डगर है मंजिल अनजान
फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ
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आँधियों के थपेड़ो ने डराया मुझको
गरजते बादलो ने दहलाया दिल को
फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ
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भटक रहा कब से पथरीली राहों पर
पथिक हूँ अनजान कंटीली राहों का
फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ
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आसन नही चलना हो कर जख्मी
गिरता पड़ता ठोकरें खाता कितनी
फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ
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चलता रहूँगा साथ देंगे पाँव जब तक
कहाँ जा रहा हूँ नही जानता अब तक
फिर भी मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ
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कभी तो मिलेगी यूँ चलते हुए मंजिल
कहीं तो ले जाएगी ये राह जिंदगी की
यही सोच मै उस ओर पग बढ़ा रहा हूँ
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मौलिक एवं अप्रकाशित रचना
Comment
आ ब्रजेश जी ,आ श्री राम जी ,आ डा प्राची जी ,आ बागी जी ,आ लक्षमण जी ,आ दिनेश जी ,उत्साह वर्धन हेतु आप सब का हार्दिक आभार ,धन्यवाद
Every foolish never has an aim.
अच्छी रचना की प्रस्तुति हुई है आदरणीया, बधाई हो ।
मंजिल तक पहुँचने का हौसला देती रचना के लिए बधाई आ. रेखा जी
कहीं तो ले जाएगी ये राह जिंदगी की .......सुन्दर
सुन्दर रचना!
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