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शाहराह-ए-ज़िन्दगी पे अँधेरा ज़रूर था,
पर उस के पार दिन का भी डेरा ज़रूर था !

ये मैं ही था जो तीरगी में मुब्तिला रहा,
उसने तो रौशनी को बिखेरा ज़रूर था !

जेहन-ओ-ख्याल में बसा था और ही कोई,
हाँ, ले रहा वो सातवाँ फेरा ज़रूर था !

आंसू छुपा रहा था जो चश्मे कि आड़ में,
बिछुड़ा हुआ साथी कोई, मेरा ज़रूर था !

मीलों तलक तवील था उस घर में फासला
वो घर नहीं था, रैन बसेरा ज़रूर था !

जो कौड़ियों के मोल लूट ले गया खिज़ां
वो मौसम-ए-बहार, लुटेरा ज़रूर था !

जिस घर की ईंट ईंट से गायब था मेरा नाम
उस घर की नींव में लहू मेरा ज़रूर था !



( शाहराह = मार्ग, तीरगी = अँधेरा, मुब्तिला = संलिप्त, तवील = विशाल, खिज़ां = पतझड़ )

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Comment by Rash Bihari Ravi on May 6, 2010 at 1:51pm
सर मैं सरल भासा इस्तेमाल करता हुईं और आपकी गजल जो दिल को छूती हैं उसके लिए मेरे पास सब्द नहीं हैं इसके कारन मैं ......... का प्रयोग किया था और अंत में जय हो सर रवि (गुरु) आपका सिस्य बन गया हैं हमें उम्मीद हैं आपको मंजूर होगा ,
Comment by Rash Bihari Ravi on May 6, 2010 at 1:13pm
जेहन-ओ-ख्याल में बसा था और ही कोई,
हाँ, ले रहा वो सातवाँ फेरा ज़रूर था !

sir ji .................................main bahut kuch kahna chahta huin par ............jai ho
Comment by Admin on May 6, 2010 at 9:12am
आंसू छुपा रहा था जो चश्मे कि आड़ में,
बिछुड़ा हुआ साथी कोई, मेरा ज़रूर था !
फिर हम लोगो के बीच एक उम्द्दा ग़ज़ल आदरणीय श्री योगराज प्रभाकर जी द्वारा प्रस्तुत की गई है , इसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद, उर्दू और अरबी के कठिन शब्दों का अर्थ हिंदी मे लिखकर मुझ जैसो का राह बहुत ही आसान कर दिया है आपने , अब ग़ज़ल को और भी गहराई से समझा जा सकता है, बहुत ही सराहनीय पर्यास है आपका,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on May 6, 2010 at 12:38am
bahut acchi gajal hai...sahi me bolne ke liye kuch sabd hai nahi hai.......
जिस घर की ईंट ईंट से गायब था मेरा नाम
उस घर की नींव में लहू मेरा ज़रूर था !

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 5, 2010 at 11:37pm
जेहन-ओ-ख्याल में बसा था और ही कोई,
हाँ, ले रहा वो सातवाँ फेरा ज़रूर था !

जिस घर की ईंट ईंट से गायब था मेरा नाम
उस घर की नींव में लहू मेरा ज़रूर था !

नि:शब्द ! हा मुझे नि:शब्द कर दिया है आपकी ये ग़ज़ल, कुछ समझ मे नहीं आ रहा है की क्या लिखू इस रचना पर, कुछ भी लिखना सूरज को रोशनी दिखाने के बराबर है, केवल मै यही कहूँगा की बेहतरीन ग़ज़ल है यह जिसकी प्रत्येक लाइन दिल मे गहराई तक प्रवेश कर जा रही है, बस ऐसे ही अपना आशीर्वाद हम सब पर बनाये रखे यही कामना है,

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