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सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं

सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं
नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं ||

नहीं है तू कहीं भी अब मेरी कल की तमन्ना में
जूनून -ए - इश्क की अब भी मगर अंगड़ाइयां क्यूँ हैं ?

मिटा डाले सभी नगमे मुहोबत्त के तराने सब
अमर अब भी मेरे दिल में तेरी रुबाइयां क्यूँ हैं ||

बुरा ये वक्त था या मै , नहीं मालूम ये मुझको
गिनाते लोग मुझको आपकी अच्छाइयां क्यूँ हैं ||

सुना है प्यार का घर है खुदा के नूर से रौशन
हमारे प्यार में फिर हिज्र की सच्चाईयां क्यूँ है ||

सुबह से शाम तक मिलती नहीं फुर्सत जमाने से
लबों पर है हंसी दिल में बसी तन्हाईयाँ क्यूँ हैं ||

मुहोब्बत हूँ कोई तो एक दिन दिल में बसाएगा
तुम्हारे हुश्न पर पड़ने लगी ये झाइयां क्यूँ हैं ||

मिटा डाली सभी यादें कहीं दिल में दफ़न कर दी
बिना बदनामियों के मिल रही रुसवाइयां क्यूँ हैं ||

सुबह की ख्वाहिसों में रात की तन्हाईयाँ क्यूँ हैं
नहीं है तू मगर अब भी तेरी परछाईयाँ क्यूँ हैं ||

.................manoj

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Comment

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Comment by pawan amba on March 3, 2013 at 2:06pm

बुरा ये वक्त था या मै , नहीं मालूम ये मुझको...bahut sundar 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 2, 2013 at 5:54pm

बहुत सुन्दर ग़ज़ल मनोज नौटियाल जी, हार्दिक बधाई 

Comment by Meena Pathak on March 2, 2013 at 4:24pm

बहुत सुन्दर गज़ल ... बधाई आप को

Comment by Abhinav Arun on March 2, 2013 at 3:43pm

बुरा ये वक्त था या मै , नहीं मालूम ये मुझको
गिनाते लोग मुझको आपकी अच्छाइयां क्यूँ हैं ||

kya kahne waah manoj hardik badhai aapko !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 2, 2013 at 3:27pm

एक अच्छी ग़ज़ल के लिए दाद कुबूल कीजिये.

बधाई.. .

Comment by नादिर ख़ान on March 1, 2013 at 11:17pm

मिटा डाले सभी नगमे मुहोबत्त के तराने सब
अमर अब भी मेरे दिल में तेरी रुबाइयां क्यूँ हैं ||

बुरा ये वक्त था या मै , नहीं मालूम ये मुझको
गिनाते लोग मुझको आपकी अच्छाइयां क्यूँ हैं ||
सुना है प्यार का घर है खुदा के नूर से रौशन
हमारे प्यार में फिर हिज्र की सच्चाईयां क्यूँ है ||

सुबह से शाम तक मिलती नहीं फुर्सत जमाने से
लबों पर है हंसी दिल में बसी तन्हाईयाँ क्यूँ हैं ||

बहुत खूब मनोज जी ये शेर बहुत पसंद आए ....

Comment by विन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठी on March 1, 2013 at 10:02pm
आदरणीय भाई मनोज जी!
बहुत ही उम्दा शेर कहा है आपने,बधाई।इन शेरों के लिये खास तौर पर-
//सुबह से शाम तक मिलती नहीं फुर्सत जमाने से
लबों पर है हंसी दिल में बसी तन्हाईयाँ क्यूँ हैं ||

मुहोब्बत हूँ कोई तो एक दिन दिल में बसाएगा
तुम्हारे हुश्न पर पड़ने लगी ये झाइयां क्यूँ हैं ||//
Comment by SALIM RAZA REWA on March 1, 2013 at 9:30pm

सुना है प्यार का घर है खुदा के नूर से रौशन
हमारे प्यार में फिर हिज्र की सच्चाईयां क्यूँ है || manoj ji  sher achche hai

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