मेरे सामने की सीट पर एक युवती और एक अधेड़ उम्र के पुरुष बैठे हुए थे तथा मेरी सीट पर भी मेरे इलावा एक सहयात्री बैठा था । ऊपर की सीट पर भी दो लोग सोये थे । युवती अपने बगल के यात्री से बोली, "अंकल आप किनारे होकर बैठें तो मैं जरा लेट लूँ ।" और वो कम्बल शरीर पर डाल कर लेट गयी । ऊपर की सीट से एक यात्री के उतरते ही मैं भी ऊपर की सीट पर जाकर लेट गया। मेरा गंतव्य सुबह सात से पहले नहीं आने वाला था अतः मैं आँख बंद सोने का प्रयास करने लगा । कब नींद लग गयी पता ही नहीं चला ।
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आपसे पूर्णतया सहमत हूँ आदरणीय डॉ स्वरण साहब, सराहना एवं उत्साहवर्धन हेतु आभार ।
सराहना हेतु हार्दिक आभार आदरणीया डॉ गैरोला जी ।
साहित्य समाज का आइना होता है
वह सरफिरे साहाब, अंकल की उमर पा गए ऐसी हरकत करते हुए , काश की उनको ये दवा खूब जोर से पहले ही मिल जानी चाहिए थी जब वह किशोर रहे हो ऐसी हरकत के साथ....बहुत जबरदस्त कहानी... समाज के एक पहलू एक समस्या को उजागर करती हुई..
आदरणीय विजय निकोर साहब, लघुकथा पर आपकी सार्थक टिप्पणी देख मन मुग्ध है, सादर आभार,स्नेह बना रहे ।
आदरणीया वेदिका जी, उत्साहवर्धन हेतु बहुत बहुत आभार ।
लघु कथा आपको अच्छी लगी , यह जान मन हर्षित है, बहुत बहुत आभार आदरणीया अरुणा कपूर जी ।
आदरणीया कविता वर्मा जी, लघुकथा को सराहने हेतु आभार आपका ।
आशा दीदी इस लघु कथा को आपका आशीर्वाद मिला, लेखन कर्म सार्थक हुआ,सादर आभार ।
सराहना हेतु कोटिश: आभार आदरणीया शन्नो दीदी ।
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