कल -कल की ध्वनि आ रही ,सुनो मधुर संगीत !
प्रकृति बांसुरी बजती,होता यही प्रतीत !!
शीतल बयार बह रही ,तन-मन ठंडा होय !
देख भ्रमर दल पुष्प पर,ह्रदय प्रफुल्लित होय !!
तरुवर की छाया मिले ,लिये बिछौना घास !
इस प्रकृति वरदान में ,सब ले खुलकर स्वास !!
पेड़ों की रक्षा करो ,कटने ना दें आप !
सबको ,कमी से इनके ,लगे भयानक श्राप !!
राम शिरोमणि पाठक "दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित
Comment
paryavarniy kavita ka sunder prastuti badhai
सुन्दर कथ्य और भाव लिए दोहे है | हार्दिक बधाई श्री राम शिरोमणि पाठक जी
आदरणीय बृजेश कुमार सिंह जी हार्दिक आभार !!!!!!!!!!!!!!
अत्यन्त सुन्दर! अप्रतिम!
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