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मन को ऐसा राखिये ,जैसे गंगा नीर !
निर्मल जल से जिस तरह ,रहता स्वच्छ शरीर !!
************************************************
मोल भाव ना ज्ञान का ,क्रय-विक्रय ना होय!
खर्च करो जितना इसे ,वृद्धि निरंतर होय !!
******************************************
सच्चा सेवक है वही ,जो दे सबको चैन !
देख दूसरों की व्यथा ,जिसके छलके नैन !!
*******************************************
हृदय धनी उस मनुज का ,जग में उसका मान !
ऊँच-नीच सम भाव जो ,सबको दे सम्मान!!
******************************************
लोभ मोह से दूर हो ,प्रभु महिमा बतलाय !
मन को रखता स्वच्छ जो ,संत वही कहलाय !!

**********************************************

राम शिरोमणि पाठक"दीपक"
मौलिक /अप्रकाशित

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Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on March 7, 2013 at 3:41pm

बहुत  सुंदर दोहे रचे हैं आपने राम जी बधाई स्वीकार कीजिए 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 6, 2013 at 4:15pm

आपको संयत प्रयास करते देखना बहुत ही अच्छा लगा भाई रामशिरोमणि.. .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 6, 2013 at 2:47pm

प्रिय राम शिरोमणि पाठक जी,

आपके द्वारा प्रस्तुत इस दोहावली को पढ़ कर आत्मीय खुशी हुई.

हर दोहा बहुत ही उत्तम भाव को प्रस्तुत करता है.

मात्रा गणना, शिल्प, प्रवाह सभी बहुत सुन्दर है.

हृदय से बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं.

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 6, 2013 at 11:19am

मन को ऐसा राखिये ,जैसे गंगा नीर !
निर्मल जल से जिस तरह ,रहता स्वच्छ शरीर !! सुन्दर दोहा 

सभी दोहे सुंदर सन्देश देते भाव, बधाई श्सरी राम शिरोमणि पाठक जी 

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on March 6, 2013 at 7:43am

सुन्दर उपदेश देती रचना! बधाई! 

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