For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - एक मुसलसल जंग सी जारी रहती है

एक मुसलसल जंग सी जारी रहती है --

जाने कैसी मारा मारी रहती है --

 

एक ही दफ़्तर हैं, दोनों की शिफ्ट अलग
सूरज ढलते चाँद की बारी रहती है --

 

भाग नहीं सकते हम यूँ आसानी से
घर के बड़ों पर ज़िम्मेदारी रहती है --

 

इक ख्वाहिश की ख़ातिर ख़ुद को बेचा था
अब भी शर्मिन्दा ख़ुद्दारी रहती है --

 

साहब जी नारीवादी तो हैं, लेकिन
साहब के घर अबला नारी रहती है --

हम भी गुजरे थे इक दौरे लज़्जत से
'इश्क़' नाम की जब बीमारी रहती है --

 

उस पगली का तकिया भी भीगा होगा
अपनी तबियत भी कुछ भारी रहती है --

चादर ताने सोती है सारी दुनिया
मालिक ! तेरी पहरेदारी रहती है -- --

साहब जी नारीवादी तो हैं, लेकिन

Views: 1006

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Savitri Rathore on April 7, 2013 at 12:18am

एक मुसलसल जंग सी जारी रहती है --

जाने कैसी मारा मारी रहती है --

 विवेक मिश्र  जी अत्यंत समसामयिक रचना .....सुन्दर प्रस्तुति !

 

Comment by विवेक मिश्र on April 6, 2013 at 8:03pm

बहुत शुक्रिया, आशीष नैथानी 'सलिल' जी एवं राजीव कुमार झा जी.

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on March 31, 2013 at 11:00pm

एक ही दफ़्तर हैं, दोनों की शिफ्ट अलग
सूरज ढलते चाँद की बारी रहती है --

वाह वाह !!! क्या गजब के अशआर हुए हैं ।

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on March 31, 2013 at 12:17pm

बहुत सुन्दर गज़ल ,विवेक जी .

हम भी गुजरे थे इक दौरे लज़्जत से 'इश्क़' नाम की जब बीमारी रहती है

बहुत सुन्दर .

Comment by विवेक मिश्र on March 25, 2013 at 6:18pm

हार्दिक आभार बृजेश जी.

Comment by बृजेश नीरज on March 25, 2013 at 11:36am

भई वाह! क्या लिखा है आपने! बधाई स्वीकारें।

Comment by विवेक मिश्र on March 22, 2013 at 4:27pm

धन्यवाद सज्जन जी.

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 22, 2013 at 12:16am

अच्छी ग़ज़ल हुई है ताहिर साहब, दाद कुबूल कीजिए।

Comment by विवेक मिश्र on March 19, 2013 at 9:13pm

एडमिन महोदय से अनुरोध है कि कृपया "// साहब जी नारीवादी हैं, लेकिन //" वाले मिसरे को परिवर्तित करके "// साहब जी नारीवादी तो हैं, लेकिन //" कर दें.

अग्रिम आभार के साथ
विवेक मिश्र

Comment by विवेक मिश्र on March 19, 2013 at 9:09pm

@ वीनस जी - ध्यान दिलाने के शुक्रिया बन्धु.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service