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लाजवाब , नज़्म !! वाह वा !! बधाई !!
बेहतरीन नज्म .सादर बधाई
मिलूँगा फिर कभी
कि अभी ज़रा जल्दी में हूँ
मेरी सिगरेट ख़त्म होने को है.....क्या कहने....गजब...
बधाई आपको...!!
विवेक भाई, सच कहूँ तो आपकी यह रचना चौकाने के लिए काफी है, बहुत ही गंभीर रचना हुई है, प्रतीकों और बिम्बों का प्रयोग इस रचना की उचाई को एकदम
बढ़ा दिया है |
रचना की अंतिम पंक्तियाँ ....
मिलूँगा फिर कभी
कि अभी ज़रा जल्दी में हूँ
मेरी सिगरेट ख़त्म होने को है..
आय हाय हाय, क्या कहने भाई, जीवन का फलसफा तीन पंक्तियों में, वाह |
बहुत बहुत बधाई इस रचना पर, ऐसी रचनायें रोज जन्म नही लिया करतीं |
//भाई, इलाहाबाद कब आवत बाड़ऽ.. ? सर्हियाइ के बधाई देतीं. हा हा हा .. . //
सर्हियाइ के.……………. कही वोही तरे ना नू , तू आव फेनु हम बतावत बानी ;-)
गुरुजी... ???
ई तंज कबसे मारे लगलऽ ए भाई ? :-)))))
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