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मैंने सारे बंधन तोड़ दिए

मैंने सारे बंधन तोड़ दिए,
भंवर में ही उनको छोड़ दिए|
ऐसा उसने कहा था|

ये है बिलकुल हकीकत,
रहा मै वहीँ तक|
साथ में औरों को जब
वो जोड़ लिए........
मैंने सारे..................

वाकई मै गलत था,
इसका क्या मतलब था?
कुछ कहे ही बगैर
उनको छोड़ दिए............
मैंने सारे......................

नाव फिर कभी न बहती,
भार भी न वो सहती|
साथ दोनों को तन्हा ही
छोड़ दिए..................
मैंने सारे...................

बीच में न जो उतरता,
साथ लेके उनको मरता|
कहती दुनियां उनको मैंने ही
बोर दिए................
मैंने सारे बंधन तोड़ दिए,
भंवर में ही उनको छोड़ दिए|
ऐसा उसने कहा था|

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Comment

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Comment by आशीष यादव on November 24, 2010 at 9:27pm
raju bhaiya dhanyawaad
Comment by Raju on November 21, 2010 at 1:04pm
Ashish bhai bahut badhiya kavita..........
Comment by आशीष यादव on November 17, 2010 at 6:55am
धन्यवाद राणा जी और बागी जी| मुझे बहुत ख़ुशी है की शब्द 'बोर' आप लोगो को खासा पसंद आया| प्राकृतिक रूप से लिखते समय यही शब्द आया था मेरे मष्तिष्क में| मैंने इसे न बदलना उचित समझा|

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 16, 2010 at 10:13pm
बहुत सुन्दर ..मुझे भी "बोर दिये" पसंद आया|

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 16, 2010 at 10:04pm
तिवारी सर ठीक कहे है , बोर शब्द शायद भोजपुरी शब्द है जिसका अर्थ डुबाना होता है , का प्रयोग अच्छा लगा , पूरी कविता का भाव सुंदर है , प्रयास उत्तम है , बधाई भाई आशीष, बोरने के लिये हा हा हा हा |
Comment by आशीष यादव on November 16, 2010 at 5:26am
S D tiwari sir, hausala aafjai k liye dhanyawad.

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